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________________ 447 अपनाता है। इस प्रकार स्वरूपाच्युति की अपेक्षा से छहों द्रव्यों में परस्पर भिन्नता भी है। दूसरी बात यह है कि छहों द्रव्य परस्पर एक दूसरे का उपकार करते हैं। जैसे धर्मद्रव्य जीवादि की गति में और अधर्मद्रव्य जीवादि के स्थिति में सहायक बनता है। आकाशद्रव्य लोकव्यापी और विभु होने से अपने में अन्य समस्त द्रव्यों को अवकाश (स्थान) देता है। पुद्गलास्तिकाय समस्त भौतिक रचनाओं का मूल कारण है। जीव भी परस्पर एक दूसरे का उपकार करते हैं।1303 इस तरह उपकार और उपकृत की अपेक्षा से भी द्रव्यों में परस्पर भिन्नता का भी सम्बन्ध है। अस्तित्त्व की अपेक्षा छहों द्रव्यों में एकत्त्व है। अपने-अपने निजगुणों की अपेक्षा भिन्नत्व भी है, यही जैनदर्शन का निष्कर्ष है। द्रव्य का गुण से सम्बन्ध द्रव्य और गुण के सम्बन्ध में निम्न चार बिन्दुओं के आधार पर विचार किया जा सकता है - 1. जो द्रव्य के आश्रित रहते हैं वे गुण और जो गुणों का आश्रय है वह द्रव्य है उत्तराध्ययनसूत्र'304 में द्रव्य को गुणों का आश्रयस्थल और गुण को द्रव्य के आश्रित रहनेवाले धर्मों के रूप में परिभाषित किया है। यहाँ द्रव्य को आधार और गुण एवं पर्याय को आधेय के रूप में वर्णित किया है। तत्त्वार्थसूत्र में भी "द्रव्याश्रयानिर्गुणा गुणाः1305." कहकर विशेष रूप से यह बताया गया है कि यद्यपि गुण द्रव्य के आश्रित रहते हैं, परन्तु उन गुणों के आश्रित रहने वाले अन्य कोई गुण या विशेष नहीं है। 1303 परस्परोपग्रहो जीवानाम् .... –तत्त्वार्थसूत्र, 5/21 1304 गुणाणमासओ दव्वं –उत्तराध्ययनसूत्र, 28/6 1305 तत्त्वार्थसूत्र, 5/40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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