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________________ 446 षष्टम् अध्याय द्रव्य, गुण एवं पर्याय का पारस्परिक सम्बन्ध एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से सम्बन्ध - जैनदर्शन के अभिमत में विश्व धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल इन छह द्रव्यों का समूह है। इन छहों द्रव्यों में परस्पर कथंचित् भिन्नता का और कथंचित् अभिन्नता का दोनों सम्बन्ध हैं। 1299 यद्यपि प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र और स्वप्रतिष्ठित है तथा एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से कोई वास्तविक सम्बन्ध नहीं है, फिर भी छहों द्रव्यों का अवगाहन क्षेत्र लोकाकाश होने से ये छहों द्रव्य एकक्षेत्रावगाही है। जिन आकाश प्रदेशों में धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य का अस्तित्व है, उन्हीं आकाश प्रदेशों में जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय आदि द्रव्यों का भी अस्तित्व है। आचार्य कुन्दकुन्द के शब्दों में कहें तो छहों द्रव्य अन्योन्य प्रविष्ट हैं। एक दूसरे को अवकाश देते हैं। 1300 इस प्रकार एकक्षेत्रावगाहन की दृष्टि से छहों द्रव्यों में परस्पर अभिन्नता है। दूसरी ओर जिस प्रकार चेतन एक द्रव्य और पदार्थ है, उसी प्रकार धर्म आदि द्रव्य भी एक द्रव्य और पदार्थ है। अतः द्रव्यत्व या पदार्थत्व सामान्य की अपेक्षा से छहों द्रव्यों में अभिन्नता है।1301 ___ द्रष्टव्य है इन छहों द्रव्यों का परस्पर अत्यन्त संकर होने पर भी उनमें एकता नहीं हो सकती है।1302 क्योंकि वे अपने-अपने प्रतिनियत स्वभाव से च्युत नहीं होते हैं। अनादिकाल से जीवद्रव्य और कर्मरूप पुद्गलदव्य एक दूसरे को प्रभावित करके क्षीर-नीर की तरह मिल जाने पर भी न तो जीवद्रव्य के प्रदेश, पुद्गलद्रव्य के प्रदेशों के रूप में परिवर्तित होते हैं और न ही पुद्गलद्रव्य, जीवद्रव्य के गुणों को 1299 तिहां-जड़ चेतन मांहि, पणि भेदाभेद कहतां जैन- मत विजय पामइ – द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/7 का टब्बा। 1300 अण्णोण्णं पविसंता दिता ओगास-मण्ण-मण्ण्स्स ........... पंचास्तिकाय, गा. 7 का पूर्वार्ध । 1301 भिन्न रूप जे जीवाजीवादिक तेहमां, रूपान्तर द्रव्यत्व पदार्थत्वादिक, तेहथी जगमांहि अभेद पणि आवइ - द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/7 का टब्बा 1302 मेलंता वि य णिच्चं सगं सभावं ण विजहति .......... -पंचास्तिकाय, गा. 7 का उत्तरार्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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