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________________ 445 या विजातीय द्रव्यों के संयोग से घट-पट आदि तथा मनुष्य, तिथंच आदि कार्यों (पर्यायों) होते हैं, उसी प्रकार अखण्ड वस्तुओं से अवयवों का विभाग होने से भी जो खंडित वस्तु बनती है, वह भी कार्यस्वरूप ही है। जिस प्रकार अखंडपट को फाड़ने से खंडपट, घट के फूटने पर कपाल आदि विभागजन्य पर्याय (अपूर्वकार्य) है उसी प्रकार द्वयणुक-त्र्यणुक-चतुरणुक आदि स्कन्धों के बिखरने (विभाग) से परमाणु रूप कार्य (पर्याय) की उत्पत्ति होती है। इसलिए परमाणु भी पर्याय है। सन्मतिप्रकरण में भी कहा गया है कि संयोग की तरह विभाग से भी कार्य निष्पन्न होते हैं। यथा अणुदुअणुएहिं दवे आरद्ध, 'तिअणुयं' ति तस्स ववएसो। तत्तो अ पूव विभत्तो, अणुत्ति जाओ अणु होई ।। 1298 जिस प्रकार एक अणु और द्वयणु दोनों के संयोग से बने नवीन स्कन्ध को त्र्यणुक कहा जाता है, उसी प्रकार त्र्यणुक के विभक्त होने से अलग हुए अणु को भी 'यह परमाणु है' ऐसा कहा जाता है। अतः जैसे अवयवों के संयोग से पर्याय पैदा होती है, वैसे ही अवयवों के अलग होने पर भी नवीन पर्याय की उत्पत्ति होती है। पर्याय संयोग और विभाग उभयजन्य होने से परमाणु विभागजन्य पर्याय –यह माना जा सकता है। यह परमाणु रूप पर्याय नयचक्रकृत पर्यायों के चारों प्रकारों में से किसी भी प्रकार में समाविष्ट नहीं होता है। अतः यशोविजयजी की दृष्टि में पर्यायों के उक्त भेद अपूर्ण है। 1298 सन्मतिप्रकरण, गा. 3/39 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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