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इसमें कर्मरूप परद्रव्य की अपेक्षा नहीं है। इसलिए केवलज्ञान स्वभाविक गुणपर्याय
है। 1294
विभावगुणपर्याय :
I
परद्रव्य के संयोग से प्रगट होनेवाली पर्याय को विभावगुणपर्याय कहा गया है । उदाहरणार्थ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञानआदि । ये जीव के ज्ञानगुण की पर्यायें होने पर भी कर्म नामक परद्रव्य की परतंत्रता वाले हैं। इसलिए इन पर्यायों को विभाव गुणपर्याय कहा गया है। 1295
1296
यशोविजयजी ने उपरोक्त भेदों की समीक्षा करते हुए कहा है कि इन चार प्रकारों की पर्यायों में सभी पर्यायों का समावेश नहीं होने से ये भेद अपूर्ण हैं । परमाणुरूप पर्याय का समावेश इन चार प्रकार की पर्यायों में नहीं होता है।' परमाणुरूप पर्याय विजातीय या सजातीय द्रव्य के संयोगजन्य नहीं होने से प्रथम और द्वितीय दोनों प्रकारों में अन्तर्निहित नहीं हो सकती है तथा परमाणु द्रव्यरूप होने से वह तीसरे और चतुर्थ प्रकार में भी अन्तर्भूत नहीं हो सकता है ।
कदाचित् कोई ऐसी दलील करे कि 'परमाणु' पर्याय नहीं है, अपितु द्रव्य है । इसका कारण यह है कि पर्याय कार्यरूप होता है तथा जो कार्यरूप होता है वह सदैव संयोगजन्य ही होता है। जिस प्रकार तंतुओं के संयोग से पट रूप कार्य संपन्न होता है, उसी प्रकार परमाणु किसी अंशों का संयोगस्वरूप नहीं है । एतदर्थ परमाणु पर्याय ही नहीं है। इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हुए यशोविजयजी कहते हैं - शास्त्रों में 'परमाणु' को विभागजात कार्य कहा गया है। 1297 जिस प्रकार सजातीय
1294 केवलज्ञान ते स्वभावगुणपर्याय, कर्मरहितपणा माटइं
1295 मतिज्ञानादिक- ते विभावगुणपर्याय, कर्म परतंत्रपणा माटिं
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1297 पर्यायपणुं तेहनइं विभागजात शास्त्रि कहिउं छइ.
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14 / 16 का टब्बा
वही. गा. 14/16 का टब्बा
1296
ए चार भेद पणि प्रायिक जाणवा, जे माटइं परमाणुरूप द्रव्यपर्याय ते ए चारमाहि न अन्तर्भावइ वही, गा. 14 / 16 का टब्बा
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14 / 16 का टब्बा
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