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1. सजातीय द्रव्य पर्याय :
समान जातीय द्रव्यों के संयोग से उत्पन्न होने वाली पर्याय को सजातीय द्रव्यपर्याय कहा गया है। जैसे – द्वयणुक, त्र्यणुक, चतुरणुक आदि पुद्गलस्कन्धों की सजातीय द्रव्य पर्याय होती है। द्विप्रदेशी आदि स्कन्ध दो-तीन-चार परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न होते हैं। 1292 ये सभी परमाणु पुद्गलास्तिकाय नामक एक ही द्रव्य के होने से इन परमाणुओं के संयोग से बने द्विप्रदेशी स्कन्ध आदि सजातीयद्रव्य पर्याय है।
2. विजातीय द्रव्यपर्याय :
परस्पर भिन्न जाति के दो द्रव्यों के संयोग से प्रगट होनेवाली पर्याय विजातीय द्रव्य पर्याय है। जैसे - मनुष्य, तिर्यच आदि पर्याय विजातीय द्रव्य पर्याय के उदाहरण हैं। 1293 मनुष्य आदि पर्यायें जीवद्रव्य और कर्म (पुद्गलद्रव्य), इन दो द्रव्यों के संयोग से उत्पन्न होती है। ये दोनों द्रव्य भिन्न-भिन्न जाति के द्रव्य हैं। एक चेतन द्रव्य है तो दूसरा अचेतन द्रव्य है। अतः मनुष्य आदि पर्याय विजातीय द्रव्य के संयोगजन्य होने से, इन्हें विजातीय द्रव्य पर्याय कहा जाता है।
स्वभाविक गुणपर्याय :
जिस गुणपर्याय में परद्रव्य की अपेक्षा नहीं रहती है, उसे स्वभाविक गुणपर्याय कहा जाता है। जैसे- केवलज्ञान। यह जीवद्रव्य का स्वतंत्र और स्वभावभूत गुण है।
1292 द्वयणुक द्विप्रदेशिकादि स्कन्ध, ते सजातीय द्रव्यपर्याय कहिइं, 2 मिली एक द्रव्य उपनुं ते माटि. ....... वही, गा. 14/16 का टब्बा 1293 मनजादिपर्याय ते विजातीय द्रव्यपर्यायमांही,
2 मिली परस्पर भिन्न जातीय द्रव्य पर्याय उपवो ते वती .......... वही, गा. 14/16 का टब्बा
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