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'परापेक्षा' के समान होने पर धर्मास्तिकाय आदि की आकृति को अशुद्ध पर्याय कहने में कोई आपत्ति नहीं आती है। 1289
इस प्रकार धर्म आदि चारों द्रव्यों की आकृति को परद्रव्य-निरपेक्ष या स्वद्रव्य की पर्यायरूप में मानने पर वह शुद्धव्यंजनपर्याय है तथा उन्हीं आकृतियों को परद्रव्य - सापेक्ष या परद्रव्य के संयोगजन्य मानने पर अशुद्धव्यंजनपर्याय है। एक ही पर्याय को परद्रव्य की अपेक्षा के आधार पर अशुद्ध या स्वद्रव्य के आधार पर शुद्धपर्याय कहा जाता है। स्वपर्याय के रूप में विवक्षा करने पर परद्रव्य के संयोग की अपेक्षा नहीं रहती है । परापेक्षा की विवक्षा करने पर परद्रव्य के संयोग की अपेक्षा रहती है। यही शुद्ध और अशुद्ध पर्याय की विलक्षणता है। 1290
उपाध्याय यशोविजयजी ने अपने ग्रन्थ 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में देवसेन आचार्य कृत नयचक्र में वर्णित चार प्रकार की पर्यायों का भी उल्लेख किया है। 1291 नयचक्र के अनुसार पर्याय के मुख्य दो भेद हैं द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय । प्रथम द्रव्य पर्याय के सजातीय और विजातीय के रूप में दो प्रकार हैं । गुणपर्याय के भी स्वभाव और विभाव के भेद से दो भेद हैं।
द्रव्यपर्याय
सजातीय द्रव्य पर्याय
1289 धर्मादिक परपज्जइ, विसमाइ एम। अशुद्धता अविशेषथी, जिअ पुद्गलि जेम ।।
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पर्याय
विजातीय द्रव्यपर्याय
442
पर्या
स्वाभाविक गुणपर्याय विभाविक गुणपर्याय
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14 / 14
1290 तस्मादपेक्षानपेक्षाभ्यां शुद्धाशुद्धानेकान्तव्यापकत्वमेव श्रेयः द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/13 का टब्बा हवइ प्रकारान्तरइ चतुर्विध पर्याय नयचक्रई कहिया ते देखाडइ छइ
1291
इम सजातीयद्रव्यपर्याय, विजातीयद्रव्यपर्याय, स्वभावगुणपर्याय, विभावगुणपर्याय, 4भेदपर्यायना कहवा
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/16 का टब्बा
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