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________________ 441 द्रव्यों में प्रगट होने वाली परद्रव्य के संयोगजन्य घटधर्मास्तिकाय, पटधर्मास्तिकाय, घटाधर्मास्तिकाय, पटाधर्मास्तिकाय, घटाकाश, पटाकाश इत्यादि पर्यायें भी असद्भूत व्यवहारनय से ही ग्राह्य होने से अशुद्ध पर्यायें ही कही जायेगी। द्वितंतु आदि के समान केवल सजातीय द्रव्यों के अंशों के संयोगजन्य (केवल स्वद्रव्य से स्वद्रव्य के संयोगजन्य) पर्यायों को ही अशुद्ध पर्याय मानने पर तो जीव द्रव्य में प्रगट होनेवाली पुद्गल (कर्म) रूप विजातीय द्रव्य के संयोगजन्य मनुष्य आदि पर्यायों को भी अशुद्ध पर्याय नहीं कहकर उपचरित पर्याय ही मानना पड़ेगा। 1286 पुनः सजातीय द्रव्यों के संयोगजन्य पर्यायें केवल पुद्गलास्तिकाय द्रव्य में ही होने से जीव में होनेवाली मनुष्य आदि पर्यायें, धर्म आदि चारों द्रव्यों में होने वाली घटधर्मास्तिकाय आदि पर्यायों को अशुद्ध पर्याय नहीं कहा जा सकेगा, क्योंकि ये पर्यायें संयोगजन्य है। परन्तु शास्त्रों में मनुष्य आदि पर्यायों को अशुद्ध पर्याय के रूप में स्वीकार किया गया है।1287 एतदर्थ दो द्रव्यों के संयोगजन्य चाहे वह द्रव्य सजातीय हों अथवा विजातीय हो, पर्याय को अशुद्धपर्याय कहा जाता है। क्योंकि वह पर्याय स्वतन्त्र द्रव्यजन्य न होकर उभयजन्य पर्याय होती है। उपचरित पर्याय वहां होती है जहाँ कल्पना की जाती है अर्थात् वास्तविक स्वरूप अन्यत्र हो और उसकी कल्पना अन्यत्र हो वहाँ उपचरित पर्याय होती है। जैसे ज्ञानगुण आत्मा में होता है। किन्तु पुस्तक आदि ज्ञान का कारण होने से पुस्तक में ज्ञान का आरोपन किया जाता है।1288 घटधर्मास्तिकाय आदि पर्यायों में इस प्रकार का उपचार, कल्पना या आरोपन नहीं होने से वे उपचरित पर्याय नहीं हैं, अपितु अशुद्ध पर्याय हैं। जिस प्रकार जीव और पुद्गल द्रव्य की मनुष्यादि तथा द्वयणुकादि पर्यायों को परद्रव्य के संयोग की विवक्षा से अशुद्धपर्याय कहा जाता है, उसी प्रकार धर्मादि द्रव्यों की आकृतियों को भी परद्रव्य के संयोग की विवक्षा से अशुद्ध पर्याय कहा जाता है। 1286 द्वितन्तुकादि पर्यायनी परि एकद्रव्यजनकावयवसंघातनइंज अशुद्ध द्रव्य व्यंजन पर्यायपणं ज कहतां __ रूडू लागइ ................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/13 का टब्बा 1287 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2, धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 698 1288 वही, पृ. 698 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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