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________________ 448 2. द्रव्य का भेदक धर्म गुण है - द्रव्य का स्वलक्षण गुण है। विवक्षित द्रव्य को द्रव्यान्तर से पृथक् करने वाले उस द्रव्य के स्वलक्षण रूप गुण ही होते हैं। 1306 जैसे ज्ञानादिगुणों के कारण जीवद्रव्य पुद्गल आदि द्रव्यों से भिन्न अस्तित्व रखता है और पुद्गलद्रव्य भी रूप, रस आदि गुणों के कारण अन्य द्रव्यों से अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। यदि द्रव्यों में भेदक गुण न हो तो द्रव्यों में सांकर्य हो जायेगा। अतः द्रव्य में भेद करनेवाला धर्म गुण है।1307 द्रव्य के अन्वयी विशेष गुण है - द्रव्य को अन्वय और गुणों को अन्वयी कहा जाता है।1308 द्रव्य का प्रवाह अनवरत् रूप से चलता रहता है, इसलिए वह अन्वय है और यह अन्वय जिनके हैं वे अन्वयी कहलाते हैं। द्रव्य में अन्वयता या 'यह वही है ऐसी पहचान गुणों के कारण ही होती है। क्योंकि द्रव्य के समस्त अवस्थाओं में गुण की अनुवृत्ति बराबर पायी जाती है। अतः अनन्त गुणों के समुदाय रूप द्रव्य में जिन विशेषों की अनुवृत्ति पाई जाती है, वे अन्वयी विशेष ही गुण हैं।1309 4. द्रव्य के सहवर्ती या सहभावी गुण हैं - जिस द्रव्य के जितने और जो-जो गुण होते हैं, वे तीनों काल में उतने और वे ही रहते हैं। जो द्रव्य में युगपत् सदाकाल रहते हैं वे ही गुण हैं। 1310 गुण सदा 1306 आलापपद्धति, 1/93 1307 सर्वार्थसिद्धि,5/38/600 1308 पंचाध्यायी, श्लो. 1/42, 44 1309 द्रव्याश्रया गुणाः स्युर्विशेषमात्रास्तु निर्विशेषाश्च, ....................... पंचाध्यायी, श्लोक -1/104 1310 सह भवो गुणाः ............. ............................. आलापपद्धति, सू. 92 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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