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________________ द्रव्य-गुण-पर्यायनोरास की दूसरी विशेष उपयोगिता यह है कि इस ग्रन्थ का सांगोपांग अध्ययन करने वालों के लिए सन्मतितर्क जैसे दुरूह दार्शनिक ग्रन्थों के द्वार उद्घाटित हो जाते हैं। क्योंकि यशोविजयजी ने प्रस्तुत ग्रन्थ में द्रव्य, गुण, पर्याय के पारस्परिक सम्बन्धों का स्पष्टीकरण स्याद्वाद और नयवाद के आधार पर ही किया है। स्याद्वाद और नयवाद अनेकान्तवाद के दो स्तम्भ है और अनेकान्तवाद संपूर्ण जैनदर्शन की आधारशिला है। जैनदर्शन का एक भी सिद्धान्त अनेकान्तवाद के बिना अपना अस्तित्व नहीं रखता है। अतः अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और नयवाद को समझे बिना जैनदर्शन जगत में प्रवेश नहीं हो सकता है। यशोविजयजी ने प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, नयवाद और सप्तभंगी आदि का बहुत ही सुन्दर, सरल और स्पष्ट विवेचन किया है, जिसके अभ्यास से दार्शनिक ग्रन्थों का अभ्यास सरल एवं सुगम बन जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ की सर्वाधिक उपयोगिता इस दृष्टि से है कि यशोविजयजी ने इस ग्रन्थ की रचना मरूगुर्जर भाषा में गेयस्वरूप में की है। इस कारण से संस्कृत और प्राकृत भाषा से अनभिज्ञ व्यक्ति भी इस रास का अभ्यास करके अपने द्रव्यानुयोग के ज्ञान में अभिवृद्धि कर सकता है। इस ग्रन्थ की उपयोगिता को देखते हुए इस ग्रन्थ को बहूमूल्य तत्त्व रूपी रत्नों की मंजूषा की उपमा से अलंकृत किया गया है। -000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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