________________
"चरण करणप्पहाणा, ससमय-परसमयमुक्कवारा चरण करणस्स सारं, निच्छयसुद्धं न जाणति । ।”
तत्त्व चिन्तन की उपेक्षा करके केवल महाव्रत आदि धर्मक्रियाओं से व्यक्ति शिवपथ का राही नहीं बन सकता है । द्रव्यानुयोग के चिन्तन और मनन के बिना वास्तविक तत्त्वरूचि नहीं हो सकती है । तत्त्वरूचि के बिना सम्यग्दर्शन और सम्यग्दर्शन के अभाव में शुद्धात्मस्वरूप की अनुभूति संभव नहीं है।
प्रस्तुत न्यायविशारद महोपाध्याय यशोविजयजीकृत 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' द्रव्यानुयोग का अनमोल ग्रन्थ बतलाया गया है और इसी कारण से इस ग्रन्थ की उपयोगिता अत्यधिक है। इस ग्रन्थ में द्रव्य, गुण और पर्याय के यथार्थ स्वरूप के विषय में गहरी मीमांसा की गई है । द्रव्य क्या है ? द्रव्य का लक्षण, द्रव्य का स्वरूप, कौन-कौन से द्रव्य हैं ? आदि का तथा द्रव्य-गुण- पर्याय के पारस्परिक संबन्ध आदि का आगम और आगमिक व्याख्या साहित्य एवं अनेक अन्य ग्रन्थों के उल्लेखों और साक्षीपाठों के आधार पर तर्कसंगत युक्तियों के साथ विशद विवेचन किया गया है। ऐसे विवेचन के अभ्यास से द्रव्य, गुण, पर्याय का वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होकर आत्म-अनात्म का विवेक जागृत हो सकता है। जगत के वास्तविक परिवर्तनशील स्वरूप को जानकर जगत और जगत के विषयों के प्रति वैराग्य जागृत होकर स्व में केन्द्रित हुआ जा सकता है।
स्वयं यशोविजयजी ने नवपद की पूजा के ढाल में कहा
Jain Education International
"अरिहंत पद ध्यातो थको, द्रव्वह-गुण-पज्जायो रे भेद - छेद करी आत्मा, अरिहंतरूपी थायो रे । "
3 सन्मतिप्रकरण, गा. 3 / 67
25
-
इसमें द्रव्य - गुण - पर्याय के ध्यान और चिन्तन की उपयोगिता को स्पष्ट किया है। अरिहंत में द्रव्य क्या है ? उनके गुण कौनसे हैं ? कौन - कौनसी पर्यायाएं होती हैं ? आदि का ध्यान एवं चिन्तन से अरिहंत की आत्मा के भेद को जानकर, उस भेद को छेदकर आत्मा स्वयं अरिहंत स्वरूप को प्राप्त कर लेती है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org