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आलापपद्धति में अगुरुलघुगुण की हानिवृद्धि से उत्पन्न होने वाली पर्याय को अर्थपर्याय के रूप में परिभाषित करके, परनिरपेक्ष और परसापेक्ष के आधार पर सामान्यतया स्वभाव अर्थपर्याय और विभाव अर्थपर्याय के रूप दो भेद किये हैं । किन्तु जीवद्रव्य के अतिरिक्त अन्य द्रव्य और गुण के भिन्न-भिन्न स्वभाव अर्थपर्याय और विभाव अर्थपर्याय की व्याख्या उपलब्ध नहीं है । आलापपद्धति के कर्ता आचार्य देवसेन के शिष्य माइल्लधवल कृत नयचक्र में भी द्रव्य और गुणों की स्वभाव और विभाव पर्यायों की ही चर्चा है, किन्तु व्यंजन या अर्थपर्याय की कोई चर्चा नहीं की है । परन्तु यशोविजयजी कृत ‘द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में जीवद्रव्य की तरह पुद्गलद्रव्य के भी चार व्यंजनपर्याय और चार अर्थपर्याय की व्याख्या की गई है । ग्रन्थकार के अनुसार पुद्गल द्रव्य की शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय, अशुद्ध व्यंजनपर्याय, शुद्धगुणव्यंजनपर्याय और अशुद्धगुणव्यंजनपर्याय इन चारों दीर्घकालवर्ती पर्यायों में प्रतिसमय होने वाला सूक्ष्म अभ्यंतर परिणमन ही शुद्धद्रव्य अर्थपर्याय आदि चार प्रकार की अर्थपर्याय है। 1273 जैसे परमाणु की एकसमयवर्ती पर्याय शुद्धद्रव्यार्थपर्याय है, द्वयणुकादि स्कन्धों की एकसमयवर्ती पर्याय अशुद्धद्रव्यार्थपर्याय है, परमाणु के वर्ण आदि गुणों की एक समयवर्ती पर्याय शुद्धगुणार्थपर्याय है तथा द्वयणुकादि स्कन्धों के वर्ण आदि गुणों की एकसमयवर्ती पर्याय अशुद्धगुणअर्थपर्याय है। संक्षेप में शुद्धाशुद्ध द्रव्य और गुण में होनेवाला प्रतिक्षणवर्ती सूक्ष्म परिणमन ही शुद्धाशुद्ध द्रव्य और गुण की अर्थपर्याय है ।
धर्मादि चारों द्रव्यों में आठों पर्याय
धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चारों अखण्ड और काल की अपेक्षा अनादि अनंत द्रव्यों का जो आकार है, वह द्रव्य व्यंजनपर्याय है। धर्मास्तिकाय का आकार लोकाकाश सदृश है । अधर्मास्तिकाय का आकार भी लोकाकाश के समान है। लोकाकाश का आकार दो पैर फैलाकर और कमर पर हाथ रखकर खड़े पुरूष के आकार का है। लोकालोक रूप आकाश का आकार गोल है तथा कालद्रव्य का
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सूक्ष्म
अर्थपर्याय ते
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.. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14 / 9 का पूर्वार्ध
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