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परमाणु के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श आदि गुणों की पर्याय को ग्रन्थकार ने पुद्गल द्रव्य की शुद्धगुणव्यंजन पर्याय कहा है।1266 परमाणु स्वतंत्र द्रव्य और परनिरपेक्ष होने से उसकी वर्णादि गुण पर्याय शुद्ध गुण व्यंजनपर्याय है। परमाणु अतिसूक्ष्म होने पर भी उसमें दो स्पर्श { स्निग्ध-रूक्ष में से कोई एक स्पर्श तथा शीत-उष्ण में से कोई एक स्पर्श) एक रस, एक गन्ध और एक वर्ण अवश्य होते हैं। 1267 इन्हीं दो स्पर्श, एकरस, एकगंध, और एक वर्ण की पर्याय को पुद्गल की शुद्ध गुण व्यंजनपर्याय कहा है। 1288 क्योंकि परमाणु पुद्गल द्रव्य की स्वभावपर्याय होने से परमाणु में पाये जाने वाले गुणों की अवस्था शुद्धगुणव्यंजनपर्याय है।1269
4. अशुद्धगुण व्यंजनपर्याय :
द्वयणुकादि संयोगजन्य स्कन्धों में पाये जाने वाले रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि गुणों के परिणमन को ग्रन्थकार ने अशुद्धगुणव्यंजनपर्याय के नाम से अभिहित किया है।1270 द्वयणुकादि स्कन्धों में होने वाला वर्णान्तर, रसान्तर, गन्धान्तर, स्पर्शान्तर रूप परिणमन विभाव गुण व्यंजन पर्याय है।1271 द्रव्य के वैभाविक रूप से परिणमन होने पर उसके गुणों में भी वैभाविक परिणमन होना निश्चित है। क्योंकि गुणों के समुदाय को भी द्रव्य कहा गया है। अतः स्कन्धरूप पुद्गलों की विभाव दशा में पाये जाने वाले रूपादि गुणों की पर्याय ही विभाव या अशुद्ध गुणव्यंजन पर्याय है।1272
1266 इम गुण कहतां-पुद्गलद्रव्यना शुद्ध गुण व्यंजनपर्याय,
अशुद्धगुण व्यंजनपर्याय ते निजनिज गुणाश्रित जाणवा ..... द्रव्यगुणपयार्यनोरास, गा. 14/8 का टब्बा 1267 एयरस वण्ण गंध दो फासं सद्द कारणमसदं ............................ पंचास्तिकाय, गा. 1268 वर्ण-गंध-रसैकैक-अविरूद्ध स्पर्शद्वयं स्वभाव गुणव्यंजनपर्यायाः ....... आलापपद्धति, सू. 27 1269 नयचक्र (माइल्लधवलकृत), गा. 30 1270 इम गुण कहतां
............................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/8 का टब्बा 1271 रस-रसान्तर-गन्ध-गन्धान्तरादिः विभाव गुणव्यंजनपर्यायाः ............... आलापपद्धति, सू. 25 1272 नयचक्र (माइल्लधवलकृत), गा. 33
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