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है।1260 नयचक्र'261 में अनादिनिधन कारणरूप और कार्यरूप परमाणु को पुद्गलों की स्वभावपर्याय के रूप में प्रतिपादित किया है। परमाणुओं के संयोग से स्कन्धों की उत्पत्ति होने से, परमाणु कारण रूप भी है तथा स्कन्धों के टूटने से परमाणु अपने परमाणु स्वरूप को प्राप्त करने से परमाणु कार्यरूप भी है। परमात्मप्रकाश की टीका में परमाणु के आकार को स्वभावद्रव्यव्यंजनपर्याय कहा है। 1262
2. अशुद्धद्रव्य व्यंजनपर्याय :
द्वयणुक, त्र्यणुक, चतुर्युक ....... इत्यादि स्कन्ध, पुद्गलद्रव्य की अशुद्धद्रव्य व्यंजनपर्याय है। क्योंकि ये स्कन्ध रूप पर्यायें अनेक परमाणुओं के संयोग से बनती है
और परमाणुओं के टूटने या वियोग होने पर नष्ट भी हो जाती है। इसलिए स्कन्ध द्रव्य का मूलभूत स्वतन्त्र स्वरूप नहीं होने से अशुद्ध द्रव्यस्वरूप है।1263 यही कारण है कि द्वयणुक आदि स्कन्ध को पुद्गल द्रव्य की अशुद्ध द्रव्य व्यंजनपर्याय कहा है।1264 नयचक्र में पृथ्वी, छाया, जल, चक्षु के अतिरिक्त शेष चार इन्द्रियों का विषय, कर्मवर्गणा के योग्य स्कन्ध और कर्मवर्गणा के अयोग्य स्कन्ध को पुद्गल की विभाव पर्याय कहा है तथा इन्हें क्रम से अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म कहा है। 1265 नियमसार में भी स्कन्ध के इन्हीं छह भेदों की चर्चा उपलब्ध है जिसकी चर्चा हमने पूर्व में की है।
3. शुद्धगुणव्यंजन पर्याय :
1260 नियमसार, गा. 36
1261 नयचक्र (माइल्लधवलकृत), गा. 29 1262 परमात्मप्रकाश, गा. 57 की टीका 1263 द्वयणुकादिकद्रव्य ते पुद्गलद्रव्यना अशुद्धव्यंजनपर्याय, संयोग जनित छइ ते माटि......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/8 का टब्बा 1264 अ) आलापपद्धति, सू. 24 ब) नयचक्र, गा. 32 स) परमात्मप्रकाश, गा. 37 की टीका 1265 पृथ्वी जलं च छाया, चउरिंद्रिय विसयकम्मपरमाणू अइथूल थूल थूला सुहमं सुहमं च अइसूहमं ............
नयचक्र (माइल्लधवलकृत) गा. 31
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