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कर्म सापेक्ष पर्याय होने से अशुद्ध गुण पर्याय है। इस दीर्घकालवर्ती पर्याय में होनेवाली एक समयवर्ती पर्याय अशुद्ध गुण अर्थ पर्याय है।
यशोविजयजी ने शुद्धाशुद्ध अर्थपर्याय को सम्मतिप्रकरण ग्रन्थ के आधार पर भिन्न प्रकार से भी परिभाषित किया है। द्रव्य और गुणों की दीर्घकालवर्ती पर्यायों की अभ्यंतर एकसमयवर्ती और सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय की विषयभूत क्षणिक पर्याय को शुद्ध अर्थ पर्याय कहा है। 247 दूसरे शब्दों में क्षण-क्षणवर्ती पर्याय को शुद्ध अर्थ पर्याय के रूप में अभिहित किया है तथा एक समयवर्ती पर्याय नहीं होने पर भी जो दीर्घकालवर्ती पर्याय की अपेक्षा से अल्पकालीन पर्याय है, उसे अशुद्ध अर्थपर्याय कहा है। 248 जैसे मनुष्यत्व रूप दीर्घकालवर्ती पर्याय की अपेक्षा से बालत्व पर्याय अल्पकालवर्ती है। यद्यपि यह बालत्व पर्याय एकसमयवर्ती नहीं है, फिर भी 'अल्पकालत्व' की विवक्षा से अर्थपर्याय भी कही जाती है। परन्तु एक समयवर्ती नहीं होने से यह अशुद्ध अर्थपर्याय है। इसकी साक्षी के लिए सम्मतिप्रकरण कीगान /32 को उद्धृत किया है।
पुरिसम्मि पुरिससद्दो जम्माई मरणकालपज्जतो।
तस्स 3 बालाईया पज्जवजोया बहुवियप्पा।। जो जन्म से लेकर मरणकाल पर्यन्त तक पुरूष, 'पुरूष', 'पुरूष' ऐसे समान शब्द का वाच्य बनता है तथा 'पुरूष', 'पुरूष' ऐसी समान प्रतीति का विषय बनता है, जीव की वह पुरूष रूप सदृशपर्याय प्रवाह व्यंजनपर्याय है। इस पुरूष रूप व्यंजनपर्याय में बालत्व, यौवनत्व, वृद्धत्व आदि जो अल्पकालवर्ती (एक समय से अधिक कालवर्ती) पर्यायें हैं वे सभी पुरूषरूप व्यंजनपर्याय की अवान्तर पर्याय हैं। 249
1247 इम ऋजुसूत्रादेशाइं क्षणपरिणत जे अभ्यंतरपर्याय, ते शुद्ध अर्थपर्याय ... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/5 का
टब्बा
1248 अनइं जे जेहथी अल्पकालवर्ती पर्याय, ते तेहथी अल्पत्वविवक्षाइं अशुद्ध अर्थपर्याय कहवा
......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/5 का टब्बा 1249 सम्मतिप्रकरण, गा. 1/32 का विवेचन, -पं.सुखलालजी, पृ. 18
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