________________
अशुद्ध व्यंजन पर्याय है तथा क्षयोपशमिक या उपशमिक समयक्त्व, मिथ्यात्व श्रद्धा गुण की अशुद्ध या विभाव व्यंजन पर्याय है। 1239
प्रत्येक दीर्घकालवर्ती पर्याय ( व्यंजनपर्याय) में असंख्य क्षणिक पर्यायें होती हैं। 1240 इन असंख्य क्षणिक पर्यायों का समूह ही दीर्घकालवर्ती व्यंजन पर्याय है । कच्चा आम एक ही क्षण में पक्का आम नहीं बनता है। कच्चे आम में प्रतिक्षण परिणमन होता रहता है। उसके रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि गुण प्रतिक्षण नवीन-नवीन अवस्थाओं को धारण करते रहते हैं । वह परिवर्तन इतना सूक्ष्म और क्षणिक (एक समयवर्ती) होता है कि उसको न तो आँख देख पाती है और न नहीं शब्द उसे अपना विषय बना सकता है। यही क्षणवर्ती परिवर्तन अर्थ पर्याय है। इन्हीं सूक्ष्म परिणमनों या अर्थपर्यायों का परिणाम पक्का आम है। पक्का आम कच्चे आम में प्रतिक्षण घटित हुए सूक्ष्म परिणमनों का समूह है जो स्थूल और दीर्घकालवर्ती परिणमन है। यह दीर्घकालवर्ती परिणमन व्यक्त होने से शब्द आदि का वाच्य बन सकता है। इसी स्थूल, दीर्घकालवर्ती और शब्दगोचर परिणमन को व्यंजनपर्याय कहा गया है। इस प्रकार प्रत्येक स्थूल परिणमन किन्हीं सूक्ष्म परिणमनों का ही प्रतिफल है । यही कारण है कि उपाध्याय यशोविजयजी ने दीर्घकालवर्ती व्यंजनपर्याय की आभ्यंतरवर्ती क्षणिक पर्यायों जो सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय का विषय है, उन्हें अर्थपर्याय के रूप में अभिव्यंजित किया है। 1241 एतदर्थ शुद्ध द्रव्य, अशुद्ध द्रव्य, शुद्ध गुण और अशुद्ध गुण इन चारों प्रकार के व्यंजनपर्यायों की आभ्यन्तरवर्ती तथा एकसमयवर्ती पर्यायें उक्त चारों प्रकार की अर्थ पर्याय है ।
5. शुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय :
पं. भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री, पृ. 16
1239 आलापपद्धति विवेचन 1240 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग - 2, धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 664 इम ऋजुसूत्रादेशइं क्षणपरिणत जे अभ्यंतरपर्याय, ते शुद्ध अर्थ पर्याय
1241
टब्बा
Jain Education International
427
-
For Personal & Private Use Only
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/5 का
www.jainelibrary.org