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गुण व्यंजन पर्याय है। इसी तरह केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र आदि सर्व क्षायिक भावजन्य गुणात्मक पर्यायें शुद्ध गुण व्यंजन पर्याय हैं। 1234 आलापपद्धति1235 में जीव के अनन्त चतुष्टय को स्वभाव गुण व्यंजन पर्याय कहा है। जीव में ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से अनन्तज्ञान, दर्शनावरणीयकर्म के क्षय से अनन्तदर्शन, मोहनीय कर्म के क्षय से अनन्त सुख, अन्तरायकर्म के क्षय से अनन्त वीर्य पर्याय उत्पन्न होती है। ये कर्मोपाधि रहित और काल की अपेक्षा से स्थायी पर्याय होने से स्वभाव गुण व्यंजनपर्याय है । संक्षेप में द्रव्यकर्म और भावकर्म से रहित चेतन द्रव्य के ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य आदि गुणों की पर्यायें शुद्ध गुण व्यंजनपर्याय हैं।1236
4. अशुद्ध गुण व्यंजन पर्याय :
गुणों की अशुद्ध अवस्था अशुद्धगुण व्यंजनपर्याय है । द्रव्यगुणपर्यायनोरास' और आलापपद्धति1238 दोनों में मतिज्ञान आदि को जीव की अशुद्ध गुण व्यंजन पर्याय कहा है। क्योंकि मतिज्ञानादि क्षयोपशमभाव जन्य भेद हैं अर्थात् कर्म सापेक्ष हैं । इसलिए अशुद्ध हैं तथा दीर्घकालवर्ती और जीव के गुण रूप होने से व्यंजन गुण पर्याय हैं। जीवद्रव्य के समस्त क्षयोपशमभाव और उपशम भाव जन्य गुणों की सभी पर्याय अशुद्ध व्यंजन गुण पर्याय हैं जैसे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और कुअवधिज्ञान ये सातों जीव के ज्ञान गुण की अशुद्ध व्यंजन पर्याय हैं। इसी प्रकार चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, दर्शन गुण की
1234 परमात्मप्रकाश, गा. 57 की टीका
1235 स्वभाव गुण व्यंजन पर्यायाः अनंतचतुष्टय रूपाः जीवस्य
1236 माइल्लधवल कृत नयचक्र, गा. 25
1237 गुणथी व्यंजन इम द्विधा, केवल मइ भेद
उत्तरार्ध
1238 विभाव गुण व्यंजन पर्यायाः मत्यादयः ।
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आलापपद्धति, सू. 23
आलापपद्धति, सू. 21
-1237
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/4 का
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