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________________ 425 द्रव्य के संयोग से उत्पन्न होने से अर्थात् परद्रव्य सापेक्ष होने से अशुद्ध पर्याय है तथा दीर्घकालवर्ती होने से व्यंजन पर्याय है। यह अशुद्ध व्यंजन पर्याय एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, पृथ्वीकाय आदि सुखी-दुःखी, राजा-रंक आदि अनेक प्रकार की होती है।1230 आचार्य देवसेन ने जीव की विभाव व्यंजन पर्याय के संक्षेप में नर, नारक आदि चार प्रकार और विस्तार से 84 लाख योनि भेद किये हैं।1231 नयचक्र के अनुसार चार गति के जीवों के तथा विग्रह गति वाले जीवों के आत्म–प्रदेशों का शरीराकाररूप परिणाम अशुद्ध द्रव्य व्यंजनपर्याय है। संसारी जीव के आत्मप्रदेशों का आकार उसके शरीर के आकार का होता है और शरीर कर्मजन्य होता है। इसलिए जीव प्रदेशों का स्व शरीर परिमाण होना अशुद्ध द्रव्य व्यंजन पर्याय है। यद्यपि विग्रह गति में गमन करने वाले जीव का आहारक, औदायिक एवं वैक्रिय शरीर नहीं होते हैं, फिर भी उनके आत्मप्रदेशों का आकार वही होता है, जिस शरीर को छोड़कर वे आये हैं। 1232 सिद्ध जीवों को छोड़कर अन्य जीवों के भवान्तर में ऋजुगति से गमन करने पर भी उनके आत्म प्रदेशों का आकार पूर्व शरीर के अनुरूप होता है, सिद्धों का कुछ न्यून होता है। 3. शुद्ध गुण व्यंजन पर्याय : गुणों की शुद्ध अवस्था ही शुद्ध गुण व्यंजन पर्याय है। ग्रन्थकार यशोविजयजी ने इस पर्याय को केवलज्ञान के उदाहरण से स्पष्ट किया है। 1233 केवलज्ञान क्षायिक भावजन्य गुणात्मक पर्याय होने से शुद्ध गुण पर्याय है। क्योंकि केवलज्ञान रूप गुण पर्याय परनिमित्त के बिना (कर्म आदि के क्षयोपशम, उपशम आदि के बिना) स्वतः होती है। इस प्रकार केवलज्ञान दीर्घकालवर्ती और ज्ञान गुण की पर्याय होने से शुद्ध 1230 अशुद्ध द्रव्यव्यंजनपर्याय मनुष्य, देव, नाकर, तिर्यगादि बहु भेद जाणवा, जे माटि ते द्रव्य भेद पुद्गल संयोगजनित छ। .................. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/4 का टब्बा 1231 अशुद्ध गुण व्यंजन पर्याय मतिज्ञानादिरूप जाणवा ....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/4 का टब्बा 1232 माइल्लधवल कृत नयचक्र, गा. 22 1233 गुणधी व्यंजन इम द्विधा, केवल मइ भेद ............ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/4 उत्तरार्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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