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द्रव्य की वर्तमान कालस्पर्शी अर्थात् क्षणवर्ती पर्याय को अर्थपर्याय कहा है। 212 जैसे - घटादि की तत्क्षणवर्ती पर्यायें, अर्थपर्याय है। पुद्गलास्तिकाय द्रव्य का स्वभाव पूरण-गलन होने से प्रथम क्षण घट में जो मृन्मयत्व है, वह द्वितीय क्षण में नहीं रहता है और द्वितीय क्षण में जो मृन्मयत्व है, वह तीसरे समय में नहीं रहता है। प्रतिक्षण कण बदलते रहते हैं। अतः घटादि की तत्-तत् क्षणवर्ती मृन्मयत्व आदि पर्याय अर्थ पर्याय है।
जयसेनाचार्य ने पर्याय के दो मुख्य भेद किये हैं - द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय अथवा व्यंजनपर्याय और अर्थपर्याय। जिस पर्याय से द्रव्य की एकता का ज्ञान होता है, वह द्रव्य पर्याय है और जिससे गुण के द्वारा अन्वयरूप एकता का ज्ञान होता है, वह गुणपर्याय है। प्रत्येक के पुनः समानजातीय और असमानजातीय के भेद से दो भेद किये हैं। यहाँ द्रव्य के प्रदेशत्व गुण के परिणाम या द्रव्य के आकार (संस्थान सम्बन्धी पर्याय) को द्रव्यपर्याय और अन्य गुणों के परिणमन को गुणपर्याय के रूप में परिभाषित किया है। 1213 जैसे - नर-नारकादि आकाररूप या सिद्ध के आकाररूप पर्याय, द्रव्यपर्याय हैं और ज्ञानादि गुणों की हानि-वृद्धिरूप स्वभाव पर्याय या विभावपर्याय परिणमन गुणपर्याय है।1214
नयदर्पण में द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय को भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। एक गुण की प्रतिसमय जो अवस्था होती है, वह गुणपर्याय है तथा अनेक गुणों की प्रतिसमय होने वाली अवस्थाओं का समूह द्रव्य पर्याय है अर्थात् इन अवस्थाओं के समूह से फलित होने वाली द्रव्य की अवस्था, द्रव्यपर्याय है।1215 जैसे आम का खट्टापन और मीठापन गुणपर्याय है, क्योंकि इसमें आम के रस गुण की प्रमुखता है।
1212 तेहमां सूक्ष्म वर्तमान कालवर्ती अर्थपर्याय, जिम घटनइं ततक्षणवर्ती पर्याय - वही, टब्बा 1213 पंचास्तिकाय, गा. 16 की तात्पर्यवृत्ति 1214 पुरूषार्थसिद्धिउपाय, गा. 9 1215 नयदर्पण - 85
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