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________________ पर्याय के प्रकार वस्तु में होने वाले परिवर्तन या परिणमन को पर्याय कहा जाता है । उपाध्याय यशोविजयजी ने सन्मतिप्रकरण 1208 आदि ग्रन्थों के आधार पर पर्याय के संक्षेप में दो भेद किये हैं व्यंजनपर्याय और अर्थपर्याय । 1209 आचार्य देवसेन ने भी आलापपद्धति में पर्याय को व्यंजनपर्याय और अर्थपर्याय के रूप विभाजित किया है। 1210 यशोविजयजी ने व्यंजनपर्याय की विमर्शना में जिन द्रव्यों की जो-जो पर्यायें त्रिकाल को स्पर्श करनेवाली होती है, उन्हें व्यंजनपर्याय कहा है। 1211 जो दीर्घकालवर्ती पर्याय है, वह व्यंजनपर्याय है । यहाँ त्रिकालस्पर्शी का तात्पर्य अनादिअनन्त नहीं है। क्योंकि पर्याय परिवर्तनात्मक होने से सादिसान्त होती है । द्रव्य ही अनादिअनन्त होता है। जो पर्याय प्रगट होने के बाद न्यून से न्यून तीन समय और उससे अधिक समय तक रहती, वह भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल इन तीनों कालों को स्पर्श करनेवाली दीर्घकालवर्ती पर्याय है । वही व्यंजनपर्याय है। जैसे घटादि में रहा हुआ मृन्मयत्व (मिट्टीपना) व्यंजनपर्याय है । मृत्पिण्ड, श्यास, कोश, कुशूल, घट और कपाल आदि सभी अवस्थाओं जो मृन्मयत्व, कठीनत्व, पृथ्वीत्व आदि जो-जो पर्यायें हैं, वे दीर्घकालवर्ती और त्रिकालस्पर्शी होने से व्यंजनपर्याय हैं । पुद्गलद्रव्य अनादि अनन्त है। इस पुद्गल द्रव्य में कालक्रम से उत्पन्न मृन्मयत्व पर्याय सादिसान्त होने पर भी तीनों कालों को स्पर्श करनेवाली दीर्घकालवर्ती पर्याय है। इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय की सुवर्णत्व, पत्थर, मकान, दुकान आदि तथा जीव की नर, नारक, देव, तिर्यंच आदि पर्यायें व्यंजन पर्यायें हैं । I 419 — Jain Education International 1208 सन्मतिप्रकरण, गा. 1 / 30 1209 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/1 1210 आलापपद्धति, सू. 15 - 1211 जे जेहनो त्रिकालस्पर्शी पर्याय, ते तेहनो व्यंजनपर्याय कहिइं । जिम घटादिकनइं मृदादिपर्याय - ... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/2 का टब्बा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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