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________________ 418 त्रैकालिक हैं, उन्हें गुण और जो धर्म क्रमभावी हैं, उन्हें पर्याय के रूप में निर्दिष्ट किया है। इस प्रकार ग्रन्थकार ने हरिभद्रसूरि, वादिदेवसूरि, मल्लिषेणसूरि प्रभृति आचार्यों का अनुसरण करते हुए द्रव्य के क्रमभावी, किन्तु अयावद्दव्यभावी धर्मों को पर्याय कहा है। जैसे नर, नारक आदि जीव की पर्यायें हैं और पुद्गलद्रव्य के रूप में रसादि में परावर्तन अर्थात् रूप में नीला, पीला आदि और रस में मधुर, आम्ल आदि का बदलना पुद्गल द्रव्य की पर्यायें हैं। 205 धर्म, अधर्म और आकाश में गमनागमन करनेवाले, स्थिति करनेवाले, नियतक्षेत्र को अवगाहन लेने वाले द्रव्य जैसे-जैसे बदलते रहते हैं, वैसे-वैसे इन धर्मादि तीनों द्रव्यों में भिन्न-भिन्न द्रव्यों की गति, स्थिति और अवगाहन में सहायक बनने रूप धर्म भी बदलता रहता है। ये धर्मादि द्रव्यों की पर्याय है। जीव, पुदगलादि द्रव्यों की विवक्षित पर्यायों के बदलने पर उन-उन पर्यायों की वर्तना भी बदलती है। यह कालद्रव्य की पर्याय है। दिगम्बर परम्परा के देवसेन आचार्यकृत नयचक्र और आलापपद्धति में 'गुणविकाराः पर्यायाः' ऐसा पर्याय का लक्षण दिया है।1206 गुणों का विकार पर्याय है, अर्थात् गुणों की हानि-वृद्धि अथवा गुणों का रूपान्तरण पर्याय है। किन्तु यशोविजयजी देवसेन की इस पर्याय लक्षण से सहमत नहीं है। क्योंकि इस लक्षण से यही परिलक्षित होता है कि पर्याय गुण की ही होती है, द्रव्य की नहीं। परन्तु देवसेन ने पर्याय के भेदों के रूप में द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय दोनों को माना है। यदि गुणों का विकार ही पर्याय है तो द्रव्यपर्याय ऐसा भेद नहीं हो सकता है और यदि द्रव्यपर्याय है तो 'गुण का विकार पर्याय है' ऐसी व्याख्या घटित नहीं हो सकती है। पर्याय की व्याख्या में गुणों के विकार को पर्याय कहना और पर्याय के भेदों में द्रव्य पर्याय का मानना, परस्पर विरूद्ध प्रतीत होता है। इसलिए देवसेनकृत पर्याय का लक्षण सद्लक्षण नहीं है।1207 1205 क्रमभावी कहतां – अथावद्रव्यभावी, ते पर्याय कहिइं ............ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, की गा. 2/2 का टब्बा 1206 अ) आलापपद्धति, सू. 15 ब) माइल्लधवल कृत नयचक्र, गा. 17 1207 गुणविकार पज्जव कही, द्रव्यादि कहतं स्य जाणइ मनमाहि. ते देवसेन महंत .. . द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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