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________________ माना जाय तो संगति बैठ नहीं सकती है। मिट्टी का ही उत्पाद, मिट्टी का ही व्यय और मिट्टी का ही ध्रौव्य रहे, यह असंभव है। मिट्टी की पिण्डरूप पर्याय का नाश, मिट्टी की घट रूप पर्याय का उत्पाद होता है और मिट्टीपना स्थिर या ध्रुव रहता है । उत्पाद और व्यय पर्याय में होता है और पर्याय द्रव्य में होती है जो सदा ध्रुव रहता है। इसलिए उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य को मिलाकर सत् का लक्षण किया गया है । 1196 पर्याय की कल्पना के बिना उत्पाद और व्यय की व्याख्या ही संभव नहीं हो पायेगी । क्योंकि द्रव्य के ध्रुव रहते हुए उसका उत्पाद - व्यय नहीं हो सकता है। 1197 द्रव्य की अवस्थान्तरता या रूपान्तरता को नहीं मानने पर अर्थात् पर्याय की सत्ता को नहीं स्वीकारने पर वस्तु एकान्त रूप से परिणमन से रहित होकर कूटस्थ नित्य बन जायेगी । कूटस्थ नित्य वस्तु में अर्थक्रिया नहीं हो सकती है और अर्थक्रिया के अभाव में वस्तु का ही अभाव हो जायेगा । ' पर्याय के बिना व्यवहार जगत की व्याख्या भी नहीं हो सकेगी। क्योंकि पर्याय की अवधारणा के बिना इस जगत में चल रहे उत्पत्ति और विनाश के क्रम को समझाया नहीं जा सकेगा। यदि वस्तु में पर्यायान्तर नहीं होता है तो वह जिस रूप में है, उसी रूप में सदा रहेगी। उसमें किसी भी प्रकार के परिणमन की गुंजाइश नहीं रहेगी। जबकि हमारे अनुभव में आने वाला जगत तो परिवर्तनशील है। अवस्थाविहिन अवस्थावान और अवस्थावानविहीन अवस्थाएं – ये दोनों तथ्य घटित नहीं हो सकते हैं। 1198 जीव को अपरिवर्तनशील या अपरिणमनशील या पर्याय रहित मानने पर वह भी एकान्त नित्य हो जायेगा। वह सदा एकरूप ही रहेगा। परिणामस्वरूप या तो कर्त्ता होगा या भोक्ता तथा या तो सदा संसारिक रूप में ही रहेगा या मोक्षावस्था में 1196 तत्त्वार्थसूत्र, 5/29 1197 नयचक्र, गा. 45 1198 जैनदर्शन के मूल सूत्र Jain Education International 416 - आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 78 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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