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अतः इस नय के अनुसार धर्मादि चार द्रव्यों का एकप्रदेशस्वभाव है।171 पुद्गलास्तिकाय परमाणु और स्कन्ध रूप से दो प्रकार का होता है। परमाणु की एकप्रदेशता वास्तविक होने से परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से परमाणु एकप्रदेश स्वभाववाला है जबकि स्कन्ध अनेकप्रदेशात्मक होने से अनेकप्रदेश स्वभाववाला है। कालद्रव्य एक समयात्मक है। समयों का कभी पिण्ड नहीं बनने से परमभावग्राहकनय की दृष्टि से कालद्रव्य का एकप्रदेशस्वभाव है। 172
धर्मादि चारों द्रव्य अखण्ड होने परमीप्रयोजनवश इनमें भेद की कल्पना की जाती है। परन्तु यह भेद इन द्रव्यों का वास्तविक स्वरूप नहीं है, अपितु काल्पनिक स्वरूप है। इस प्रकार भेदकल्पना को प्रधानता देनेवाले भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय के अनुसार इन चारों द्रव्य में तथा पुद्गल स्कन्धों में अनेकप्रदेशता स्वभाव है। परमाणु में अन्य परमाणुओं के साथ मिलकर अनेकप्रदेशी बनने की योग्यता होने से उपचार से परमाणु भी अनेकप्रदेशी है।1173
विभावस्वभाव -
जीव में ज्ञानावरणीय आदि का क्षायिक भाव होने से शुद्ध स्वभाव है तथा कामक्रोधादि पूर्वबद्ध कर्म के उदयरूप और नवीन कर्मबध के हेतुभूत होने से अशुद्धस्वभावरूप है। इसी तरह पुद्गलद्रव्य में वर्णादि गुण होने से शुद्ध स्वभाव तथा जीव के संयोग से शरीरादिरूप पुद्गलद्रव्य में चेतनता का उपचार करने से पुद्गल में परद्रव्य के संयोगजन्य अशुद्धस्वभाव भी है। इन जीव और पुद्गलद्रव्य के शुद्ध
1171 अ) परमनयइ परद्रव्यनइ रे, भेद कल्पना अभावो रे ............. वही, गा. 13/13 का उत्तरार्ध
ब) भेद कल्पना निरपेक्षेणेतषांचाखण्डत्वादेकप्रदेशस्वभावत्वम ......... आलापपद्धति, सू. 168 1172 अ) परमभाव ग्राहकेण कालपुद्गलाणुनामेप्रदेशस्वभावत्वम् ............ वही, सू. 167
ब) काल पुद्गलाणु तणो रे, एकप्रदेश स्वभाव .. .............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/13 1173 भेदकल्पनायुत नयइ रे, अनेक प्रदेश स्वभाव ।
अणु विना, पुद्गल अणु तणो रे उपचारइ तेह भावो रे।। ....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/14
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