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असद्भूत व्यवहारनय की अपेक्षा से ज्ञानावरणीय आदि कर्म में तथा मन, वचन, काया की शुभाशुभ चेष्टा रूप नोकर्म अर्थात् शरीर में भी चेतनता पायी जाती है। क्योंकि जीव के संयोग से ही कार्मण वर्गणा ज्ञानावरणीय आदि के रूप में परिणमित होते हैं और मन, वचन और काया की शुभाशुभप्रवृति भी जीव के संयोग से होती है। इसलिए अन्य प्रसिद्ध गुण-धर्म को अन्यत्र आरोपित करनेवाला असद्भूत व्यवहारनय कर्म और नोकर्म में भी चेतनता का उपचार करता है।166 अचेतनता धर्म आदि पांचों द्रव्य का मूल और सहज स्वभाव होने से मूलस्वभावग्राही परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से धर्मादि में अचेतनता स्वभाव है। कर्म-नोकर्म पुद्गल द्रव्य के ही पर्याय होने से परमभावग्राहक नय की अपेक्षा से अचेतन स्वभाववाले हैं,1167 परन्तु जीव में यह अचेतनस्वभाव मूल या सहजस्वभाव रूप में न होकर उपचरित स्वभाव के रूप में पाया जाता है। जैसे तप्त लोहे के गोले को अग्नि का गोला कहा जाता है, उसी प्रकार कर्म और नोकर्म आदि अचेतनपदार्थों के संयोग से जीव में भी असद्भूतव्यवहारनय की अपेक्षा से अचेतनता स्वभाव भी है।168
इस प्रकार परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से जीव में चेतन तथा अन्य धर्मादि शेष पांच द्रव्यों में अचेतनस्वभाव है, किन्तु असद्भूतव्यवहारनय की अपेक्षा से जीव में अचेतनस्वभाव तथा कर्म और नोकर्म में चेतनस्वभाव भी है।
मूर्त और अमूर्त स्वभाव -
वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श पुद्गल द्रव्य का लक्षण होने से मूर्त स्वभाव पुद्गलद्रव्य का सहज स्वभाव है। अतः परमभावग्राहक नय की अपेक्षा से पुद्गलद्रव्य
ब) शुद्ध-अशुद्ध तेहथी रे, चेतन आत्मारामो रे ............... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/5 का उत्तरार्ध 1166 अ) असदभूतव्यवहारेण कर्म-नोकर्मणोरपिचेतन स्वभाव ............. आलापपद्धति, सू. 160 ब) असदभूतव्यवहारथी रे, चेतन कर्म नोकर्म।
................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/6 1167 अ) परमभाव ग्राहकेण कर्मनोकर्मणोरचेतन स्वभावः . आलापपद्धति, सू. 161
ब) परमभाव ग्राहकनयइ रे, तेह अचेतन धर्मो रे .... ......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/6 का उत्तरार्ध 1168 अ) जीवस्याप्यसभूत व्यवहारेण अचेतन स्वभाव ...................... आलापपद्धति, सू. 162
ब) असद्भूत व्यवहारथी रे, जीव अचेतन धर्म .................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/7पूर्वार्ध
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