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परचतुष्टय रूप से परिणमन नहीं करने की योग्यता (अभव्य) -ये दोनों ही वस्तु के निसर्गसिद्ध प्रधान परिणामिक भाव है। जैसे कि जीव अपने ज्ञानादि गुणों में प्रतिक्षण परिणमित होने पर भी परद्रव्य के साथ रहने मात्र से परद्रव्य अर्थात् अजीव के रूप में परिणमित नहीं होता है। परमभावग्राहकद्रव्यार्थिकनय द्रव्य के स्वतः सिद्ध पारिणामिक स्वभाव को ही प्रधानरूप से ग्रहण करता है। अतः इस नय के अनुसार वस्तु में भव्य और अभव्य दोनों स्वभाव है।1163
परमस्वभाव -
प्रत्येक द्रव्य का अपना-अपना स्वतः सिद्ध पारिणामिक भाव होता है, वही उसका परमभाव है। जैसे आत्मा का पारिणामिक भाव चेतनता है। परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय मुख्य रूप से द्रव्य के परमस्वरूप या प्रधानस्वरूप को ही अपना विषय बनाता है। अतः इस नय की अपेक्षा से वस्तु में परमभावस्वभाव है।164 परमभाव स्वभाव में सामान्य की तथा परमभावग्राहकद्रव्यार्थिकनय नामक एक नय की ही प्रवृति होती है।
चेतन और अचेतन स्वभाव - ___जीव में शुद्ध रूप से चेतन स्वभाव और ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के उदय से अचेतनस्वभाव है। संसारी जीवों में क्षायोपशमिक भाव होने से ये दोनों स्वभाव मिश्रित रूप से पाये जाते हैं। द्रव्य के मूलभूत सहज स्वभाव को अपना विषय बनाने वाला शुद्धाशुद्ध मिश्रित परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय जीव के मूल स्वभाव चेतन स्वभाव के साथ मिश्रित अचेतन स्वभाव को भी ग्रहण करता है।1165
1163 अ) परमभाव ग्राहकेण भव्य-अभव्य-पारिणामिक स्वभावः
आलापपद्धति, सू. 158 ब) परमभाव ग्राहक नयइ रे, भव्य अभव्य परिणाम ................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/5 1164 इहां अस्ति-नास्ति स्वभावनी परिइं स्वपर द्रव्यादि ग्राहक नय-2 प्रवृति न होई । 1165 अ) शुद्ध-अशुद्ध परमभाव ग्राहकेण चेतनस्वभावो जीवस्य ...... आलापपद्धति, सू. 159
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