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________________ रूप में ही उल्लेख करता है। अतः इस नय की दृष्टि से अन्वयरूप एक द्रव्य अनेक स्वभावरूप प्रतीत होता है।1160 भेद और अभेद स्वभाव - वस्तु का व्यवहार करने के लिए भेद आवश्यक है। जैसे आम्र और नीम दोनों वृक्ष के रूप में समान होने पर भी आम्र के स्थान पर नीम और नीम के स्थान पर आम्र का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसलिए व्यवहारनय वस्तु में भेद करता है। अतः सद्भूतव्यवहारनय की अपेक्षा से गुण-गुणी, पर्याय–पर्यायी (द्रव्य), आधार-आधेय आदि अभेदवस्तु में संख्या, संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन, इन्द्रियग्राह्यता आदि के आधार पर भेद है। इस प्रकार सद्भूतव्यवहारनय से वस्तु में भेदस्वभाव है।1161 गुण-गुणी आदि में एकान्तभेद न हो जाय, इस कारण से भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिकनय गुण-गुणी आदि में भेद की कल्पना नहीं करके शुद्ध द्रव्य मात्र को ही अपना विषय बनाता है। क्योंकि गुण-गुणी आदि एक क्षेत्रावगाही होने से तथा गुण-गुणी आदि में तादात्म्य सम्बन्ध होने से इनमें वस्तुभेद नहीं होता है। अतः भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से वस्तु में अभेद-स्वभाव भी है।162 भव्य और अभव्य स्वभाव - द्रव्य का अपने-अपने पर्यायों के रूप में परिणमन करना भव्य स्वभाव तथा द्रव्य का अन्य द्रव्य के रूप में या उसकी पर्यायों के रूप में परिणमन न करना अभव्य स्वभाव है। स्वचतुष्टय रूप से परिणमन करने की योग्यता (भव्य) और 1160 अ) अन्वय द्रव्यार्थिकेन एकस्य अपि अनेक द्रव्य स्वभावत्वं ......... आलापपद्धति, सू. 155 1161 अ) सद्भूत व्यवहारेण गुण-गुण्यदिभिः भेदस्वभाव ........................ आलापपद्धति, सू. 156 ब) सद्भूत व्यवहारथी रे, गुण गुण्यादिक भेद । ..... . ............... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.13/4 1162 अ) भेद कल्पना निरपेक्ष गुण-गुण्यादिभिः अभेद स्वभावः ............ आलापपद्धति, सू. 157 ब) भेद कल्पना रहितथी रे, जाणो तास अभेदो रे द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/4 का उत्तरार्च Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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