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अनुसार कोई वस्तु नित्य नहीं रहती है। प्रतिक्षण पूर्व पर्याय के रूप में नाश और उत्तरपर्याय के रूप में उत्पाद होता रहता है। अतः इस नय की अपेक्षा से वस्तु अनित्य स्वभाववाली है।1158
एक और अनेक स्वभाव -
___प्रत्येक वस्तु में समानता और असमानता दोनों ही होते हैं अर्थात् वस्तु सामान्यविशेषात्मक होती है। जैसे जीवद्रव्य अनंत ज्ञानादि गुणों की अपेक्षा से सामान्यरूप भी है और कर्मविपाकोदय के परिणामस्वरूप एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, स्त्री-पुरूष, सुखी-दुःखी, राजा, रंक आदि रूप से विशेष भी है। परन्तु भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिकनय वस्तु के गुणभेद, पर्यायभेद, स्वभावभेद की विवक्षा को गौण करके अभेद की विवक्षा को प्रधानता से ग्रहण करता है। अतः इस नय की दृष्टि में द्रव्य एक है अर्थात् गुण और पर्यायों की सत्ता द्रव्य से पृथक् नहीं होने से अनन्त गुण और अनन्त पर्यायों का आधारभूत द्रव्य एक है।1159 जैसे जीव ज्ञानस्वरूप वाला, दर्शनस्वरूपवाला, चारित्रस्वरूपवाला तथा एकेन्द्रिय, बेन्द्रिय, सुखी, दुःखी, राजा, रंक आदि के रूप में अनेक नहीं है, परन्तु इन सभी गुण और पर्यायों का आधारभूत एक द्रव्य है।
प्रत्येक द्रव्य सामान्य की तरह विशेष भी होता है, क्योंकि किसी भी पदार्थ का व्यवहार उसके विशेष से ही होता है। सभी विशेष रूपों में द्रव्य का अन्वय अवश्य पाया जाता है। जिसके होने पर जो होता है वह अन्वय है। इस दृष्टि से द्रव्य के अनेक गुण तथा उसके अनेक पर्यायोंरूप विशेषों में यह वही है, यह वही है ऐसा एक द्रव्यका अन्वय पाया जाता है। अन्वयद्रव्यार्थिकनय की दृष्टि से द्रव्य, गुण और पर्यायों में अन्वित (सह-अस्तित्व) होने के कारण यह गुण-पर्याय का भी द्रव्य के
1158 अ) केनचित् पर्यायार्थिकनयेन अनित्य स्वभावः ................. आलापपद्धति, सू. 153
ब) कोईक पर्यायार्थिकइ रे, जाणो स्वभाव अनित्यो रे ................. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/2 उत्तरार्ध 1159 अ) भेदकल्पना निरपेक्षेण एकस्वभावः ....
आलापपद्धति, सू. 154 ब) भेदकल्पना रहितथी रे धारो एक स्वभाव .............
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/3
पाएपना
पदाण पापनाप. ............................................... मालाचा
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