SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 400 अस्ति-नास्ति स्वभाव - स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से वस्तु में अस्ति स्वभाव है और परद्रव्यादिग्राहकद्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से वस्तु में नास्ति स्वभाव है। एक ही वस्तु को जब स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव की दृष्टि से विचार किया जाता है तब वह वस्तु अस्तिस्वरूप प्रतीत होती है और उसी वस्तु का जब परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभाव के रूप में विचार किया जाता है तो वस्तु नास्तिस्वरूप प्रतीत होती है। क्योंकि वस्तु में उनका अभाव होता है। प्रत्येक वस्तु स्व स्वरूप की दृष्टि से अस्तिस्वभाववाली और परस्वरूप की दृष्टि से नास्ति स्वभाववाली होती है। स्वद्रव्यादिग्राहकद्रव्यार्थिकनय वस्तु को स्वद्रव्यादि की अपेक्षा से ही प्रधान रूप से ग्रहण करती है। अतः इस नय की अपेक्षा से वस्तु अस्ति स्वभाववाली है1155 जबकि परद्रव्यादिग्राहकद्रव्यार्थिकनय परद्रव्य आदि को मुख्य रूप से ग्रहण करती है अतः इस नय की अपेक्षा से वस्तु नास्तिस्वभाववाली है। 156 नित्य-अनित्यस्वभाव - वस्तु का स्वरूप उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक या स्थिरास्थिर होता है। द्रव्यार्थिकनय वस्तु के उत्पाद–व्यय या परिवर्तनशील स्वरूप को गौण करके उसके ध्रुवांश या सत्ता को प्रधानरूप से ग्रहण करता है। यह नय मिट्टी के घट-स्थास-कुशुल आदि विभिन्न परिवर्तनों या पर्यायों को गौण करके इन सभी में पाये जाने वाले स्थायी तत्त्व मिट्टी को ही ग्रहण करता है। अतः इस नय की दृष्टि से वस्तु नित्य है।157 इसके विपरीत पर्यायार्थिकनय ध्रवांश को गौण करके उत्पाद-व्यय या अस्थिर अंश को मुख्य रूप से ग्रहण करता है, अतः इस नय के 1155 अ) स्वद्रव्यादि ग्राहकेण अस्तिस्वभाव आलापपद्धति, सू. 150 ब) स्वद्रव्यादि ग्राहकइ रे, अस्तिस्वभाव वखाणी ............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/1 पूर्वार्ध 1156 अ) परद्रव्यादि ग्राहकेन नास्तिस्वभावः .......... .............. आलापपद्धति, सू. 151 ब) परद्रव्यादिक ग्राहकइ रे, नास्तिस्वभाव भनि आणिओ ... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.13/1 का उत्तरार्ध 1157 अ) उत्पाद-व्ययगौणत्वेन सत्ताग्राहकेण नित्यस्वभावः .............. आलापपद्धति, सू. 152 ब) उत्पाद व्यय गौणता रे, सत्ताग्राहकि नित्य ................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 13/2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy