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________________ 395 लोभ, राग द्वेष, विषयविकार वासनादि दोषों से युक्त बनता है। इस प्रकार जीव का शुद्ध बुद्ध रूप यथाजात स्वभाव का रागद्वेष के रूप में रूपान्तर होना ही विभावस्वभाव है। 141 जीव का यह. विभावस्वभाव ही उसके जन्म-मरणादि का मुख्य कारण है। विभावस्वभाव को नहीं मानने पर आत्मा सिद्ध परमात्मा की तरह शुद्ध बुद्ध हो जायेगा और ऐसे निर्विकारी आत्मा को कर्मबंध रूप उपाधि भी नहीं होगी। परन्तु यह कर्ममय उपाधि भिन्न-भिन्न जीव को भिन्न-भिन्न रूप में होती है। कर्म का बंधन करनेवाले जीवों में काषायिक परिणाम इस विभाव स्वभाव की तीव्रता के आधार पर होते हैं। तीव्र कर्मबंधन उन जीवों के तीव्र वैभाविक परिणामों से होता है। इस प्रकार पूर्वबद्ध कर्मों के विपाकोदयरूप उपाधि का कारण भी विभाव स्वभाव है जो रागादिरूप होता है।1142 विभावस्वभाव के अभाव में कर्मबन्धन नहीं होगा और कर्मबन्धन के बिना संसार और संसार के बिना मोक्ष का भी अभाव हो जायेगा। क्योंकि मोक्ष की अवस्था भी संसारपूर्वक ही होती है। 1143 पुद्गल द्रव्य जीव के संयोग से जीव के कर्मोदय के अनुरूप विभिन्न आकारों के रूप में परिणमन करता है। इसलिए पुद्गल द्रव्य में भी विभाव स्वभाव है। 5. शुद्ध स्वभाव और अशुद्ध स्वभाव - उपाधिभूत परद्रव्य के बिना द्रव्य की केवल स्वतः सिद्ध परिणमन की योग्यता शुद्ध स्वभाव है तथा उपाधिभूत परद्रव्य जन्य बहिर्भाव रूप परिणमन करने की योग्यता अशुद्ध स्वभाव है 1144 अर्थात् परद्रव्य के संयोग के बिना द्रव्य के स्वयं के गुणों में होनेवाले परिणमनपने को शुद्ध स्वभाव तथा परद्रव्य के संयोग से होनेवाले ....... 1141 जहजादो रूवंतराहणं जो सो हु विभावो ....... नयचक्र, गा. 64 का उत्तरार्ध 1142 विभावस्वभाव मान्य विना जीवनइं अनियत कहतां नाना देशकालादि विपाकी कर्मउपाधि न लागो जोइई ..............द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/8 का टब्बा 1143 स्वभाव स्वरूपस्य एकान्तेन संसार भावः ........................... आलापपद्धति, सू. 137 1144 जी हो शुद्धभाव केवलपणुं, लाला उपाधिक ज अशुद्ध ................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/9 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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