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________________ 392 रूप रसादि गुण से रहित होने के कारण जीव में अमूर्तता सहज और सुप्रसिद्ध होने पर भी शरीररूप और कर्मरूप पुद्गल के गाढ़सम्बन्ध से जीव भी कथंचित मूर्तस्वभाववाला हो जाता है। परन्तु यह परद्रव्य संयोगजन्य मूर्तस्वभाव परद्रव्य के वियोग होते ही अर्थात् मुक्तिदशा में चला जाता है, किन्तु अमूर्तस्वभाव ही सदाकाल रहता है। जीव को कथंचित मूर्तस्वभाववाला नहीं मानेंगे तो संसार का लोप हो जायेगा। 129 क्योंकि मूर्तस्वभाव के बिना जीव और शरीर का सम्बन्ध, गत्यान्तरगमन उसके आधार पर सुन्दर-असुन्दर, काला-गोरा, नीला-पीला आदि के आधार पर होने वाले राग-द्वेष, रागद्वेष से होने वाला कर्मबन्धन और कर्मबन्धन के परिणामस्वरूप जन्ममरणादि रूप संसार आदि सभी वस्तुओं का अभाव हो जायेगा।130 पुनः जीव को एकान्त मूर्तस्वभाववाला ही मानेंगे तो जीव का कभी मोक्ष नहीं होगा।131 क्योंकि शरीर आदि से रहित अमूर्त जीव ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अतः मूर्तता को धारण करने वाले जीव में भी परमार्थ से अमूर्त स्वभाव रहता है। पुद्गलद्रव्य स्वाभाविक रूप से मूर्तस्वभाववाला होने पर भी सूक्ष्मस्कन्ध, त्र्यणुक, द्वयणुक और परमाणु चक्षु से अगोचर होने से व्यवहारनय की अपेक्षा से वे भी अमूर्त कहे जाते हैं। परन्तु जो रूपादि गुण से रहित होता है, वह अमूर्त ऐसी निश्चयनय की परिभाषा के अनुसार पुद्गलद्रव्य कदापि अमूर्तस्वभाववाला नहीं होता है।132 एक परमाणु में भीरूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि अव्यक्त रूप से अवश्य रहते 1129 सर्वथा अमूर्तस्य अपि तथा आत्मनः संसार विलोपः स्यात् ..... आलापपद्धति, सू. 143 1130 जो जीवनइं कथंचित मूर्तता स्वभाव नहीं तो शरीरादिबन्धबिना .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/3 का टब्बा 1131 अ) मूर्तस्य एकान्तेन आत्मनः मोक्षस्य न अवाप्तिः स्यात् .......... आलापपद्धति, सू. 142 ब) जी हो अमूर्तता विण सर्वथा, लाला मोक्ष घटइं नहीं ..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/4 1132 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2 का विवेचन, धीरजभाई डाह्यालाल महेता, पृ. 597 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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