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और मूलधर्म के कारण ही 'ज्ञानस्वरूपी आत्मा' ऐसा कहा जाता है।1118 परमस्वभाव को नहीं स्वीकार करने पर अनंतधर्मात्मक वस्तु की पहचान नहीं हो पायेगी और अनंतधर्मों में से किसी एक धर्म को प्रसिद्ध धर्म के रूप में निश्चित करना भी असंभव हो जायेगा। 1119
विशेष स्वभाव :
जो स्वभाव प्रतिनियत द्रव्य में ही पाये जाते हैं, वे विशेष स्वभाव कहलाते हैं। विशेष स्वभाव दस हैं जिनके स्वरूप की चर्चा उपाध्याय यशोविजयजी ने द्रव्यगुणपर्यायनोरास की बारहवीं ढाल में इस प्रकार की है :
1. चेतन और अचेतन स्वभाव -
अनुभवनरूप बोध को चेतन स्वभाव कहते हैं।1120 चेतन स्वभाव के कारण ही सुख, दुःख, हर्ष, शोकादि की अनुभूति होती है। जिस स्वभाव के कारण 'यह चेतनद्रव्य है' ऐसा जीव में चेतनपने का व्यवहार किया जाता है, उस स्वभाव को यशोविजयजी ने चेतनस्वभाव कहा है।1121 यह स्वभाव जीवद्रव्य में पाया जाता है और जीव के संयोग से शरीर और कार्मणवर्गणा में भी पाया जाता है। जीव में चेतनस्वभाव सहज रूप से है जबकि शरीर एवं कर्म में चेतन स्वभाव उपचरित रूप से है। जीव और शरीर तथा जीव और कर्म दोनों क्षीरनीरवत् एकमेव होकर मिले हुए होने के कारण अचेतनस्वभाव वाले शरीर और कर्म भी जीव के संयोग से चेतन स्वभाववाले कहे जाते हैं। जैसे क्षीर और नीर दोनों एकमेव होकर मिश्रित हो जाने पर क्षीर तो क्षीर कहलाता ही है परन्तु उसके साथ मिला हुआ नीर भी क्षीर ही
1118 स्वलक्षणीभूत पारिणामिकभाव, प्रधानताइ परमभाव स्वभाव कहिइं जिम ज्ञानस्वरूप आत्मा। .....द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.11/12 का
टब्बा 1119 परमस्वभाव न कहिइं तो द्रव्यनइं विषइं प्रसिद्धरूप किम दीजइं ..... वही, गा. 11/12 का टब्बा 1120 अणुहवभावो चेयणमचेयणं होई तस्स विवरियं ......
................. नयचक्र, गा. 63 1121 जेहथी चेतनपणानो व्यवहार थाइं ते चेतनस्वभाव
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/1
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