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________________ 387 पर्यायों में परिणमन करते रहते हैं। यही भव्य स्वभाव है।111 संक्षेप में द्रव्य में उन-उन भावी पर्यायों को प्राप्त करने की योग्यता होना ही भव्य स्वभाव है। भव्य स्वभाव की अनिवार्यता को समझाते हुए यशोविजयजी कहते हैं कि भव्यस्वभाव के अभाव में द्रव्य जो प्रतिसमय नवीन-नवीन पर्यायों को प्राप्त करता है, वे पर्यायें ही मिथ्या सिद्ध हो जायेगी। जैसे मृत्पिण्ड से स्थास, कोश, कुशूल घटादि जो कार्य होते हुए दिखाई देते हैं, वे सभी मिथ्या हो जायेंगे। क्योंकि द्रव्य में उन-उन भावों के रूप में परिणमन करने की योग्यता का ही अभाव है तो पर्यायें होगी ही नहीं। इस कारण से जो भी परिवर्तन होगा, वह भी काल्पनिक ही होगा। द्रव्य के अभव्यस्वभावरूप होने से तो पररूप परिणमन भी नहीं होगा। अतः स्वरूप परिणमन और पररूप परिणमन दोनों नहीं होने से पर्यायों की उत्पत्ति नहीं होगी और पर्यायों के मिथ्या सिद्ध होने पर पर्यायवान् द्रव्य भी नहीं रहेगा। इस प्रकार सर्वशून्यता का प्रसंग आ जायेगा। 112 10. अभव्यस्वभाव - द्रव्य तीनों काल में परद्रव्य स्वरूपवाला नहीं होने से अभव्य स्वभाववाला भी है।113 यशोविजयजी के कथनानुसार त्रिकाल में परद्रव्य के साथ रहने पर भी विवक्षितद्रव्य का परद्रव्य के स्वभाव में परिणमन नहीं होना, यही अभव्यस्वभाव है।114 प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने स्वरूप में ही परिणमन करता है, उससे बाहर नहीं। चेतन, चेतनरूप होने से योग्य है, अचेतनरूप से नहीं। इस प्रकार द्रव्य की पररूप में परिणमन नहीं करने की असमर्थता ही अभव्य स्वभाव है। 1111 अनेक कार्यकरणशक्तिक जे अवस्थित द्रव्य छइ ......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/11 का टब्बा 1112 भव्य स्वभाव विना, खोटाकार्यनइं योगई शून्यपनु थाई ................. वही, गा. 11/11 का टब्बा III कालत्रये अपि परस्वरूपाकार अभवनात् अभव्य स्वभावः आलापपद्धति, सू. 115 1114 त्रिहु कालिं परद्रव्यमांहि मिलतां पण परभावइं न परिणमनु ते ........ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.11/11 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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