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________________ 386 लक्षण हैं अर्थात् गुण-गुणी का परस्पर अभिन्न सम्बन्ध, अवयव–अवयवी का अभिन्न सम्बन्ध आदि ही वस्तु का अभेद स्वभाव हैं। 106 अभेदस्वभाव को नहीं मानने पर गुण गुणी से सर्वथा भिन्न होकर निराधार हो जायेंगे। निराधार हो जाने पर उनमें परिणमनरूप अर्थक्रिया नहीं होगी। ऐसी स्थिति में गुणी द्रव्य का भी अभाव हो जायेगा।107 यशोविजयजी ने वस्तु के इस अभेदस्वभाव को सिद्ध करने के लिए तर्कसंगत युक्ति देते हुए कहा है कि अभेदस्वभाव के अभाव में द्रव्य, गुण और पर्याय में एकान्तभेद हो जाने से गुण और पर्याय, द्रव्य से अत्यन्त भिन्न हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में आधारभूत द्रव्य के बिना गुण और पर्याय नहीं हो सकते हैं और उनका बोध भी संभव नहीं है। 108 इसी अभेदस्वभाव के स्पष्टीकरण के लिए प्रवचनसार में कहा है गुण और गुणी के प्रदेश भिन्न-भिन्न नहीं होने के कारण उनमें पृथकत्व नहीं है, परन्तु अन्यत्व तो है। तद्रूपता (सर्वथा एकता) नहीं होने के कारण गुण और गुणी में अन्यत्व है अर्थात् भेदस्वभाव भी है और उनके अपृथक् होने से अभेद स्वभाव भी है।1109 इस प्रकार वस्तु में भेद और अभेद दोनों स्वभाव है। 9. भव्यस्वभाव - यहां भव्य का अर्थ है- होने योग्य । भाविकाल में होने योग्य का होना भव्य स्वभाव है।1110 प्रत्येक द्रव्य प्रतिसमय अन्य-अन्य रूपों में होता रहता है, यही द्रव्य का भव्य स्वभाव है। अवस्थित सभी द्रव्य कालक्रम से होनेवाली अपनी विभिन्न 1106 अभेदवृत्ति सुलक्षण धारी, जाणो अभेद स्वभावोजी ............... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/10 1107 भेदपक्षेऽपि विशेष स्वभावानां निराधारत्वात् अर्थक्रियाकारित्वाभावः ...... आलापपद्धति, सू. 133 1108 अभेद स्वभाव न कहिइं तो निराधारगुण-पर्यायनो बोध नथयो जोइइ आधाराधेयनो अभेद बिना बीजो सम्बन्ध ज न घटइ .... ............... द्रव्यगुणपोयनोरास, गा. 11/10 का टब्बा 1109 पविमत्तपदेसत्तं पुधत्तमदी सासणं हि वीरस्स। अण्णत्तमतब्भावो, ण तब्भवं होदि कधमेगं ।। प्रवचनसार, गा. 2/4 1110 भाविकाले स्व स्वभाव भवनात् भव्य स्वभावः आलापपद्धति, सू. 114 ........... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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