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है कि गुण-गुणी के मध्य, पर्याय और पर्यायवान् के मध्य, कारक और कारकी के मध्य संज्ञा (नामकरण) से, लक्षण से, आधार आधेय सम्बन्ध से, भेद होना ही भेदस्वभाव है।1101 संज्ञा की अपेक्षा से द्रव्य, गुण, पर्याय ऐसे भिन्न-भिन्न नाम है। लक्षण की अपेक्षा से जो गुण एवं पर्याय वाला है, वह द्रव्य है तथा जो द्रव्य का सहभावीधर्म है, वही गुण है और जो क्रमभावी अवस्थाएँ हैं वे पर्याय हैं। द्रव्य आधार है और गुण तथा पर्याय आधेय है। इस प्रकार उनमें परस्पर भेद का होना ही द्रव्य का भेद स्वभाव है। वचन भेद से भी द्रव्य में भेद की प्रतीति होती है। जैसे जीव ज्ञान, दर्शन आदि गुणवाला है, वह अस्तित्वयुक्त है, उसमें पर द्रव्य आदि नास्तिरूप है। वह नित्य है, इस प्रकार के वचन भेद से वस्तु भेद स्वभाववाली है। 1102
वस्तु को भेदस्वभाववाली नहीं मानने पर अभेदपक्ष में वस्तु सर्वथा एकरूप हो जाने से अर्थक्रिया घटित नहीं होगी और बिना अर्थक्रिया के वस्तु का भी निश्चित अभाव होगा।103 पुनः द्रव्य, गुण, पर्याय को एकान्त अभेद स्वभाव वाला मानने पर तीनों एकरूप हो जायेंगे और सर्वथा एक रूप होने पर यह द्रव्य है, यह गुण है, यह पर्याय है, ऐसा भेद व्यवहार नहीं हो सकेगा। भेद स्वभाव को स्वीकार किये बिना आधार-आधेय सम्बन्ध भी घटित नहीं होगा।1104 इसलिए वस्तु को भेद स्वभाववाली मानना आवश्यक है।
8. अभेदस्वभाव -
गुण और गुणी में संज्ञादि भेद होने पर भी वस्तुभेद नहीं है। इसलिए वस्तु अखण्ड, एक और अभेदस्वभाववाली भी है।105 द्रव्य, गुण और पर्याय परस्पर एक होकर वर्तते हैं। द्रव्यगुणपर्यायनोरास' के अनुसार अभेदभाव से रहने के लिए जो-जो
1101 गुण गुणिनई संज्ञा संख्यादिक भेदइ भेदस्वभावोजी ........... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/10 1102 भिण्ण हु वयणभेदे
....... नयचक्र, गा. 61 1103 अभेदपक्षेऽपि (सर्वथा) सर्वेषा एकत्वं ........................... आलापपद्धति, सू. 134 1104 भेदस्वभाव न मानिइं, तो सर्व द्रव्य गुण पर्यायनई एकपणु होइ..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/10 का टब्बा 1105 गुण-गुणी आदि अभेदस्वभावत्वात् अभेद स्वभावः ................. आलापपद्धति, सू. 113
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