________________
384
रूपवाला भी होता है। आकाशद्रव्य अपनी एकस्वभावता के कारण अखण्ड और एकद्रव्य होने पर भी घटद्रव्य के संयोग से घटाकाश, मठ के संयोग से मठाकाश ऐसे संयोगी भाव के कारण द्रव्य अनेक स्वभाववाला भी घटित होता है। इसी प्रकार मालवभूमि, मेवाड़भूमि इत्यादि के रूप में क्षेत्रभेद से भी आकाश में अनेक स्वभाव होते हैं।1096 संक्षेप में अखण्ड द्रव्य की दृष्टि से द्रव्य एक स्वभाववाला और यथार्थ या कल्पित भेदों की दृष्टि से द्रव्य अनेकस्वभाववाला है। जैसे आम्रवृक्ष को एक अखण्ड वृक्ष की दृष्टि से विचार करने पर 'यह वृक्ष है' ऐसा कहा जाता है। 'यह वृक्ष है, ऐसा कहना एक स्वभावता है। इसी प्रकार भेददृष्टि से यह आम्रवक्ष की शाखा है, यह प्रशाखा है, यह पत्ता है, यह फूल है, यह फल है' ऐसा विचार करने पर वृक्ष में अनेक स्वभावता या अनेक रूपता भी होती है।1097
अनेकस्वभाव को अस्वीकार करने पर यह तना है, यह शाखा है इत्यादि भेद नहीं होने पर विशेषों का अभाव हो जायेगा और विशेषों के अभाव से वृक्षात्मक सत्ता या सामान्य का ही अभाव हो जायेगा। 1098 क्योंकि विशेषों के बिना सामान्य की सत्ता भी शशशृंग की तरह असत् होगी। अनेक स्वभाव का निराकरण करने से वस्तु सर्वथा एकरूप होकर उसमें विशेषों का अभाव हो जायेगा तथा विशेषों के अभाव में सामान्य की भी सत्ता नहीं रहेगी।1099 अतः वस्तु एक रूप और अनेक रूप दोनों ही
7. भेदस्वभाव -
गुण-गुणी में संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि भेद की अपेक्षा से द्रव्य भेद स्वभाववाला है।1100 यशोविजयजी ने द्रव्य के भेदस्वभाव को इस प्रकार स्पष्ट किया
1096 पर्याय पणि आदिष्टद्रव्य करइं, तिवारइं आकाशादिद्रव्यमांहि पणि-घटाकाशादि भेदई ए (अनेकत्व) स्वभाव दुर्लभ नहीं
........ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/9 का टब्बा 1097 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2 का विवेचन, –धीरजभाई डाह्यालाल भाई, पृ. 578 1098 अनेकत्व विण सत्ता न घटइ, तिम ज विशेष अभावजी ........ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/9 1099 एक स्वरूपस्य एकान्तेन विशेषाभावः सर्वथा एकरूपत्वात् ... आलापपद्धति, सू. 131 1100 गुण-गुणी आदि संज्ञातिभेदात् भेदस्वभावः ।
आलापपद्धति, सू. 112
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org