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कारण की कार्य के रूप में परिणति होने से अनित्यता भी है। इस प्रकार पदार्थ उभयस्वभावी है। अन्यथा कारण कार्य में अभेद सम्बन्ध का व्यवहार ही नहीं होगा। क्योंकि यदि पूर्ववर्ती कारण सदा नित्य ही है, उसमें रूपान्तर नहीं होता है तो पूर्ववर्ती कारण का रूपान्तरण नहीं होने से तो उत्तरवर्ती कार्य की उत्पत्ति भी संभव नहीं होगी।1087
5. एकस्वभाव :
द्रव्य अनेक स्वभावों का आधार होने से एकस्वभाववाला है।1088 स्वभाव कभी भी अपने द्रव्य से पृथक् नहीं होते हैं। द्रव्य में सभी स्वभाव एक अखण्डरूप से रहने से द्रव्य एक स्वभाववाला है।1089 यहां स्वभाव का तात्पर्य द्रव्य में सहभावी रूप से रहनेवाले धर्मों से है। इन अनेक धर्मों का आधार एक द्रव्य है। जिस स्वभाव के कारण द्रव्य अनेक धर्मों का एक आधार बनता है, वह स्वभाव अर्थात् स्वभाव की एक आधारता ही एक स्वभाव है। जैसे वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श ये चारों पुद्गलद्रव्य के सहभावी धर्म हैं। इन अनेक धर्मों के आधार जो घटादि द्रव्य हैं वे एक हैं 1090 अर्थात् घट रूप का भी आधार है, रस का भी आधार है, इस प्रकार वह अनंतगुणों का आधार है। आत्मा भी चैतन्य आदि अनेक गुणों का आधार है।
एक स्वभाव को नहीं मानने पर द्रव्य के गुण बिखर जाने से द्रव्य का ही अभाव हो जायेगा। द्रव्य के अभाव से आधार-आधेयभाव का भी अभाव हो जायेगा। ऐसी स्थिति में अनेक गुण और पर्याय भी निराधार नहीं ठहर सकते हैं। इस प्रकार सभी पदार्थों का अभाव मानने का प्रसंग खड़ा हो जायेगा।1091 यशोविजयजी के
1087 अनित्यता जो नहीं सर्वथा, अर्थक्रिया तो हाटइजी
दलनि कारयरूप परिणति, अनुत्पन्न तो विघटइ जी .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/8 1088 (अनेक) स्वभावनां एकाधारत्वान एक स्वभाव
आलापपद्धति, सू. 110 1089 एकको अजुद सहावो
नयचक्र, गा. 61 1090 स्वभावनइ एकाधारत्वइ, एकस्वभाव विलासोजी ..
.. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/9 1091 अनेकपक्षेऽपि तथा द्रव्याभावः, निराधारत्वात् । आधार-आधेय-अभावात् च, ..... आलापपद्धति, सू. 132
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