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4. अनित्यस्वभाव :
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द्रव्य का अपनी-अपनी पर्यायों के रूप में प्रतिसमय परिणमन होने के कारण ही द्रव्य को अनित्यस्वभाववाला कहा गया है। 1083 प्रतिसमय परिवर्तित होने वाली पर्यायों की अपेक्षा से द्रव्य अनित्य स्वभाववाला है । ' द्रव्य, द्रव्य के रूप में सदा नित्य होने पर भी प्रतिसमय उनमें पर्यायों का परिवर्तन अवश्य होता है। पर्यायों की परिणति ही अनित्य स्वभाव है। 1085 द्रव्य में निरन्तर पूर्व पर्याय का नाश और उत्तरपर्याय का उत्पाद चलता रहता है । द्रव्य के अनित्य इस स्वभाव के कारण ही नाश और उत्पाद होता है। अन्यथा अनित्यस्वभाव के अभाव में वस्तु सदा कूटस्थनित्य ही रहती । इसलिए अनित्यस्वभाव का अस्तित्व अवश्य है ।
वस्तु सत् है। वस्तु के सत् स्वरूप का कभी नाश नहीं होने से वस्तु नित्य है। परन्तु सद्रुपवस्तु का विभिन्न पर्यायों के रूप में नाश और उत्पाद होने से वह अनित्य भी है। द्रव्य के रूप में नित्यता और पर्याय के रूप में अनित्यता – ये दोनों ही स्वभाव वस्तु में रहते हैं । द्रव्यार्थिकनय की दृष्टि में वस्तु नित्य है, जबकि पर्यायार्थिक नय की दृष्टि से वस्तु अनित्य है । इस प्रकार वस्तु नित्यानित्य रूप सिद्ध होती है।
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अनित्यस्वभाव को नहीं मानने पर वस्तु सदा और सर्वथा एकरूप ही होगी । सर्वथा एकरूप वस्तु कुछ भी कार्य नहीं कर सकती है। उसमें उत्पाद व्यय रूप अर्थक्रिया ही नहीं होगी । अर्थक्रिया के अभाव में वस्तु का ही अभाव हो जायेगा । 1086 कदाचित् उपादान कारण स्वयं ही कार्यस्वरूप में परिणमित होता है अर्थात् बीज ही अंकुर के रूप में परिणमित होता है तो उपादानकारण में भी कुछ 'उत्पन्नपना' होता है यह मानना पड़ेगा । इसलिए मूल द्रव्य का अन्वय रहने से नित्य होने पर भी
1083 तस्यापि अनेक पर्याय परिणमितत्वात् अनित्य स्वभावः
1084 अणिच्चरूवा हु पज्जाया
1085 नित्यस्वभाव, अनित्य स्वभावइ, पज्जय परिणति लहीइजी 1086 नित्यस्य एक रूपत्वात् एक रूपस्य अर्थ क्रियाकारित्वभाव
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आलापपद्धति, सूत्र 109
नयचक्र, गा. 60
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/7 आलापपद्धति, सू. 129
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