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होता है तब श्याम होता है और जलधारण कार्य नहीं करता है। वही घट कालान्तर में जब पक जाता है, तब रक्त होकर जलधारण का कार्य करने लग जाता है। इस प्रकार घट में श्यामावस्था (पर्याय) और रक्तावस्था (पर्याय) रूप अवस्थान्तर होने पर भी दोनों ही अवस्था में 'यह वही घट है ऐसा जो समन्वयात्मक बोध होता है, वही घट का नित्यस्वभाव है।1079 इसी प्रकार इस नित्यस्वभाव के कारण ही देवदत्त की बाल-युवा-वृद्धावस्था बदलने पर भी देवदत्त वही का वही रहता है। अतः प्रतिसमय बदलने वाली पर्यायों में भी 'यह वही द्रव्य है' ऐसी जो बुद्धि होती है, वही द्रव्य का नित्य स्वभाव है। तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार भी अपने अस्तित्व के भाव से च्युत न होना ही नित्य है।1080
द्रव्यों का नित्यस्वभाव नहीं मानने पर एकान्त क्षणिकता ही द्रव्य का लक्षण बन जायेगा। यदि क्षणिकता वस्तु का स्वभाव है, तो वस्तु उत्पन्न होते ही नष्ट हो जाने से अर्थक्रियाकारी नहीं हो सकेगी और अर्थक्रियाकारित्व के नहीं रहने पर वस्तु, वस्तु ही नहीं रहेगी अर्थात् वस्तु का ही अभाव हो जायेगा।081 पुनः वस्तु यदि उत्पन्न होने के साथ ही नष्ट हो जाती है तो प्रतिसमय नवीन-नवीन रूप से उत्पन्न .. पर्यायरूप कार्यों में 'कारण की अन्वयता नहीं रहने से कार्य की उत्पत्ति ही संभव नहीं होगी।1082 जैसे दूध-दही-मक्खन-घी आदि क्रम से होनेवाली पर्यायों में अन्वयीभूत गोरस को नित्य नहीं मानेंगे तो दूध से दही के बनते समय में यदि दूध सर्वथा नष्ट हो जाता है तो दही बनेगा कैसे ? सारांश यही है कि कार्योत्पत्ति के काल में कारणात्मक पदार्थ का सर्वथा नाश हो जाता है तो कार्य की उत्पत्ति ही नहीं हो सकती है। अतः वस्तु में नित्यस्वभाव है, जिसके कारण ही वस्तु की विभिन्न पर्यायों में वस्तु का अन्वय बना रहता है। वस्तु का अवस्थान्तर होने पर भी वस्तु सर्वथा नष्ट नहीं होती है।
1079 निज क आपणा, जे क्रमभावी नाना पर्याय, श्यामत्व-रक्तवादिक...... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/7 का टब्बा 1080 तद्भावाव्ययं नित्यम् ...
... तत्त्वार्थसूत्र, 5/31 1081 अनित्य पक्षेऽपि निरन्वयत्वात् अर्थक्रिया कारित्वाभावः ................ आलापपद्धति, सूत्र 130 1082 जो नित्यता न छइ तो, अन्वय विना न कारय होवइ .................. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.11/8
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