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अहमदाबाद में निर्मित होने की अपेक्षा नास्तिरूप है, वसंतऋतु में निर्मित घट शरद ऋतु की अपेक्षा निर्मित नहीं है। कच्चा घट, पक्के घट के रूप में नहीं है। जैसे पदार्थ स्व स्वरूप की अपेक्षा से सत् है वैसे ही पर स्वरूप की अपेक्षा से असत् अर्थात् नहीं है। 1075 यही द्रव्यों का नास्तिस्वभाव है।
वस्तु में परद्रव्यों के नास्तिस्वरूप को नहीं मानने पर एक वस्तु अन्य वस्तुस्वरूप हो जाने से संकर दोष उपस्थित हो जायेगा।'076 क्योंकि वस्तु में नास्तिस्वभाव का अभाव होने पर वस्तु स्व-स्वरूप की अपेक्षा से सत् की तरह पर-स्वरूप की अपेक्षा से भी सत् हो जायेगी। तब घट, घट ही नहीं रहकर पटरूप, मठरूप, मानवरूप, पशुरूप भी हो जाने से 'यह घट है', पट नहीं है और 'यह पट है', घट नहीं है ऐसे प्रतिनियत अर्थ की व्यवस्था नहीं बन सकेगी। इससे जगत की एक-एक वस्तु सर्वमय और एकसमान स्वरूपवाली हो जायेगी, जो कि सर्वशास्त्र
और सर्वव्यवहार की विरोधी हैं। 07 अतः जैसे सभी पदार्थों का स्वभाव अस्ति रूपता है, वैसे ही नास्ति रूपता स्वभाव भी है। अतः अस्तिस्वभाव और नास्तिस्वभाव दोनों मिलकर ही पदार्थ के प्रतिनियत स्वरूप को निश्चित करते हैं।
3. नित्यस्वभाव :
नित्यस्वभाव भी सभी द्रव्यों में सामान्यरूप से पाया जाता है। यद्यपि सभी पदार्थों में प्रतिक्षण परिणमन होता रहता है, तथापि उन परिणमनों के मध्य भी एक ऐसा एकत्वभाव रहता है जिसे देखकर हम कहते हैं, 'यह वही है।' यही नित्यस्वभाव है।1078 द्रव्य के अपनी-अपनी कालक्रम से उत्पन्न होने वाली विभिन्न पर्यायों में 'यह वही है' ऐसा जो अनुभव होता है, वह नित्यस्वभाव है। जैसे एक ही घट जब कच्चा
1075 अत्थिसहावे सत्ता असंतरूवा हु अण्णमण्णेण ....
नयचक्र, गा. 60 1076 सर्वथैकान्तेन सद्रुपस्थ न नियतार्थ संकरादिदोषत्वात् ..................... आलापपद्धति, सू. 127 1077 परभावइं पणि सत्ता अस्तिस्वभाव कहतां सर्वसर्वस्वरूपइं अस्तिथयु .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/6 का टब्बा 1078 सोयं इदि तं णिच्चा ............
नयचक्र, 60
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