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________________ कहलाती है। इस पर्याय को शब्दों में उद्घोषित किया जा सकता है, जैसे जीव की मनुष्य पर्याय । इसके विपरीत जो पर्याय वर्तमानकाल स्पर्शी है, अर्थात् प्रति क्षण एक समयवर्ती है, वह अर्थपर्याय है । यह पर्याय शब्दों द्वारा ग्रहण नहीं होती है। व्यंजनपर्याय स्थूल ऋजुसूत्र नय का विषय है जबकि अर्थपर्याय सूक्ष्मऋजुसूत्रनय का विषय है। इन दोनों अर्थात् व्यंजन और अर्थ पर्याय के पुनः दो-दो भेद किए गए हैं द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय । द्रव्य और गुण पर्याय के भी शुद्ध एवं अशुद्ध रूप से दो-दो भेद हैं। उदाहरणार्थ 'सिद्धत्व' शुद्ध द्रव्य व्यंजन पर्याय है और मनुष्यत्व आदि अशुद्ध द्रव्य व्यंजनपर्याय है । क्षायिकभावजन्य केवलज्ञानादि गुणात्मक पर्याय शुद्धव्यंजनपर्याय है और क्षयोपशम या उपशमभावजन्य मतिज्ञान आदि गुणात्मक पर्याय अशुद्ध गुण व्यंजनपर्याय है। व्यंजन पर्याय के उक्त चारों उदाहरण को सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय की दृष्टि से विचार करने पर एक समयवर्ती सिद्धत्व पर्याय, मनुष्यत्व पर्याय, केवलज्ञान पर्याय और मतिज्ञान पर्याय चारों अर्थपर्याय के उदाहरण बन जाते हैं। — Jain Education International 20 - For Personal & Private Use Only व्यवहारनय की दृष्टि से धर्म-अधर्म - आकाश ये तीनों द्रव्य व्यवहार की अपेक्षा अपरिणामी माने जाते हैं । परन्तु निश्चयनय की दृष्टि से तो ये तीनों ही द्रव्य परिणामी नित्य हैं, क्योंकि प्रत्येक द्रव्य त्रिपदी ( उत्पाद - द्रव्य - ध्रौव्य) से युक्त होने से परिणामी नित्य है और इसी कारण से धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय भी अष्टविध पर्यायों से युक्त है । इनमें भी स्वप्रत्ययजन्य और परप्रत्ययजन्य शुद्धाशुद्ध व्यंजनपर्यायाएं और अर्थपर्यायाएं हैं। धर्मास्तिकाय आदि तीनों द्रव्यों की स्वयं की जो आकृतिविशेष है वह शुद्धव्यंजन पर्याय है। लोकाशवर्ती जीव पुद्गल के संयोग से बनी जो आकृतिविशेष है, वह अशुद्धद्रव्यव्यंजन पर्याय है। गति, स्थिति, अवगाहना में जीव - पुद्गल को सहयोग करने से भी ये तीनों द्रव्य परिणामी है । - www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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