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है। अस्तित्व, आदि ग्यारह सामान्य स्वभाव है और चेतनता आदि दस विशेष स्वभाव हैं। चेतनता गुण सभी जीवों में पाये जाने के कारण सामान्य है तथा पुद्गल आदि में नहीं पाये जाने के कारण विशेषगुण हैं।
अन्त में अस्तित्व आदि ग्यारह सामान्य स्वभावों में किसी एक स्वभाव को नहीं मानने पर कौन-कौन से दोष उत्पन्न हो सकते हैं ? इत्यादि बातों को समझाया गया है।
12. बारहवीं ढाल -
प्रस्तुत ढाल में चेतना आदि दस विशेष स्वभावों या गुणों पर पूर्ण रूप से प्रकाश डाला गया है। धर्मस्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशस्तिकाय में 16-16 गुण है तथा जीव-पुद्गल में 21-21 गुण हैं एवं काल में 15 सामान्य गुणों को विवेचित करने के पश्चात् चेतनता आदि 10 विशेष गुणों को स्वीकार नहीं करने पर कौन से दोष उत्पन्न होते हैं ? इसकी समीक्षा की है।
13. तेरहवीं ढाल -
यशोविजयजी ने प्रस्तुत ढाल में ग्यारह सामान्य गुणों व दस विशेष गुणों पर नयों को घटाया है। एक गुण कौन से नय की अपेक्षा से संभव हो सकता है, इस प्रकार सामान्य रूप से नयों की विवक्षा करके ढाल को समाप्त किया गया है।
14. चौदहवीं ढाल -
इस ढाल में मुख्य रूप से पर्याय के लक्षण, स्वरूप और भेद, प्रभेदों पर प्रकाश डाला गया हैं मूलभूत द्रव्यों में जो परिवर्तन, रूपान्तरण, अवस्थान्तरण होता है, उसे पर्याय के नाम से अभिव्यंजित किया गया हैं पर्याय के मुख्य रूप से दो भेद होते हैं – व्यंजनपर्याय और अर्थपर्याय । जो पर्याय दीर्घकालवर्ती है वह व्यंजनपर्याय
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