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द्रव्यों के वर्तना, परिणाम, रूप पर्याय मात्र ही है। अतः काल जीव एवं पुद्गल की पर्याय रूप है। दूसरी विचारधारा यह है कि काल अढाईद्वीप व्यापी है, क्योंकि यह वर्ष, मास, दिवस आदि काल गणना का आधार है, किन्तु यह व्यवहार काल है। अढाईद्वीप प्रमाण मनुष्य लोक के सूर्य, चन्द्र आदि मेरूपर्वत के चारों ओर घूमते रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप रात, दिन, पक्ष, मास, वर्ष आदि काल के विभाग बनते हैं। यशोविजयजी ने इस संदर्भ में भगवतीसूत्र, तत्वार्थसूत्र, सिद्धसेन दिवाकर की द्वात्रिंशिका आदि ग्रन्थों के साक्षी पाठ भी दिये हैं।
__ दिगम्बर मतानुसार लोकाश के एक-एक प्रदेश पर एकैक कालाणु है, जो किसी डिब्बे में भरे रेत के दानों के समान है। ये कालाणु परस्पर पिंडीभूत नहीं हो सकते हैं। इस कारण से काल अस्तिकाय नहीं है। दोनों मतों को प्रस्तुत करने के पश्चात् उन्होंने दिगम्बर मत की समीक्षा की है।
ढाल के अन्त में जीव और पुद्गलद्रव्य का संक्षेप मे वर्णन है।
11. ग्यारहवीं ढाल -
इस ढाल में यशोविजयजी ने छहों द्रव्यों के गुण और स्वभावों की विशद चर्चा की है। गुण सामान्य और विशेष रूप से दो प्रकारों के होते हैं। जो गुण छहों द्रव्यों में सामान्य रूप से पाये जाते हैं वे सामान्य गुण कहलाते हैं और जो गुण विशेष-विशेष द्रव्यों में ही पाये जाते हैं, वे विशेष गुण कहलाते हैं। अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरूलघुत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्त्तत्व और अमूर्तत्व, ये 10 गुण सामान्य गुण हैं। इसके अतिरिक्त ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, गतिहेतुता, स्थिति हेतुता, अवगाहनहेतुता, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व ये कुल 16 गुण विशेष गुण हैं।
परमार्थदृष्टि से स्वभाव और गुण दोनों एक ही हैं जब अनुवृति और व्यावृति संबंध के द्वारा धर्म-धर्मीभाव की प्रधानरूप से विवक्षा की जाती है, तब वह स्वभाव कहलाता है। जब स्व-स्व स्वरूप की प्रधानता की जाती है, तब वह गुण कहलाता
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