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________________ उत्पत्स्यते भी कहलाती है। इस प्रकार एकैक समय में अनन्त - अनन्त पर्यायों के आधार पर अनन्त व्यय, अनन्त उत्पाद और अनन्त ध्रौव्यता को समझाया है । तत्पश्चात् उत्पाद के प्रयत्नजन्य और विश्रसा ऐसे दो प्रकारों को, व्यय के रूपान्तरनाश और अर्थातान्तरनाश ऐसे दो प्रकारों के और ध्रुवत्व के परिमितकाल का ध्रुवत्व और त्रेकालिकधुवत्व ऐसे दो भेदों को सम्यग् रूप से समझाया है । 10. दसवीं ढाल 17 - दसवीं ढाल में षड्द्रव्यों के स्वरूप, लक्षण आदि को विभिन्न युक्तियों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है। धर्म, अधर्म, आकाश, काल, जीव और पुद्गल इन छह द्रव्यों में प्रथम तीन द्रव्य एक और निष्क्रिय हैं जिसको अस्वीकृत करने पर सिद्धजीवों की गति विरमित नहीं हो सकेगी। क्योंकि लोकाग्र के बाहर धर्मद्रव्य का अस्तित्व नहीं होने से सिद्धजीव लोकाग्र पर स्थित हो जाता है । अधर्म द्रव्य के, जो स्थिति में सहायता करता है, अस्तित्व को नकारने पर जीव और पुद्गल की गति निरन्तर होती ही रहेगी। वे कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं हो सकते हैं और अधर्मद्रव्य के अभाव में भी स्थिति होती है तो अलोकाश में भी जीव और पुद्गल की नित्य स्थिति होनी चाहिए । आकाशद्रव्य के दो भेद किये हैं । जहाँ जीव और पुद्गल आदि हैं, वह लोकाश है। इससे भिन्न जहाँ जीव और पुद्गल आदि का अस्तित्व नहीं है, वह अलोकाश है। अलोकाकाश अपरिमित और असीम है। यदि उसको सीमित मानेंगे तो अलोकाकाश के अन्त में पुनः कोई आकाश होना चाहिए, यह मानना होगा, जो कि शास्त्र विरूद्ध है, क्योंकि इसमें अनवस्थादोष आवेगा । Jain Education International यशोविजयजी ने काल के वर्णन में श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपराओं के मतों की चर्चा करने के पश्चात् दिगम्बर मत की समीचीन समीक्षा की है। श्वेताम्बर परंपरा में भी कालद्रव्य के विषय में दो विचारधाराएं रही हैं । प्रथम विचारधारा के अनुसार काल स्वतंत्र द्रव्य नहीं है अपितु औपचारिक द्रव्य है । काल जीव, पुद्गल For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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