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व्यवहार नय में उपचार का समावेश होने से तथा निश्चय नय में गौणवृत्ति से उपचार का ग्रहण होने से उपनयों की कल्पना अनावश्यक है। इस प्रकार समीक्षा करने के बाद अन्त में निश्चयनय और व्यवहारनय के शास्त्रसिद्ध अर्थों की व्याख्या करके देवसेनकृत निश्चयनय और व्यवहारनय के अर्थों का निरसन किया गया है।
9. नवमीं ढाल -
प्रस्तुत ढाल में उपाध्याय यशोविजयजी ने उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य इन तीन लक्षणों का विस्तार से प्रतिपादन किया है। प्रत्येक द्रव्य या पदार्थ, उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीन लक्षणों से युक्त है। सभी पदार्थ प्रतिसमय पूर्व पर्याय की अपेक्षा नष्ट होता रहता है, उत्तर पर्याय की अपेक्षा उत्पन्न होता रहता है और द्रव्य की अपेक्षा से सदा ध्रुव रहता है। षड्द्रव्य में कोई भी द्रव्य ऐसा नहीं है जो किसी समय उत्पाद–व्यय-ध्रोव्य से रहित होता हो। हेमघट नाश, हेममुकुट उत्पाद और हेम से उत्पन्न शोक, हर्ष और मध्यस्थ भावों के आधार पर उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप त्रिपदी को विस्तार से समझाया है। इसी संदर्भ में बौद्ध और नैयायिकों के एकान्तवाद की उदाहरणों के माध्यम से समीक्षा करके पदार्थ को विलक्षणों से युक्त सिद्ध किया है।
व्यवहारनय भेदग्राही होने से पूर्व समय में व्यय और उत्तर समय में उत्पाद को मानता है। उदाहरण के लिए व्यवहारनय की दृष्टि से बारहवें गुणस्थानक के अन्तिम समय में घातिकर्मों का क्षय होने से और तेरहवें गुणस्थानक के प्रथम समय में केवलज्ञान की उपलब्धि होती है। परन्तु निश्चयनय अभेदग्राही होने से उत्पाद-व्यय का समय एक ही मानता है। बारहवें गुणस्थानक का अन्तिम समय ही तेरहवें गुणस्थानक का प्रथम समय है। अतः ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का क्षय और केवलज्ञान की उत्पत्ति एक ही समय में होती है। जिस समय में वस्तु का व्यय होता है, उसी समय में वस्तु नष्ट, नश्यमान और नक्ष्यते भी कहलाती है। उसी प्रकार जिस समय में वस्तु उत्पन्न होती है, उसी समय में वस्तु उत्पन्न, उत्पद्यमान, और
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