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________________ 7. सातवीं ढाल प्रस्तुत ढाल का प्रतिपाद्य विषय देवसेनाचार्य मान्य तीन उपनय और उनके भेद, प्रभेद हैं । सद्भूतव्यवहार उपनय के दो भेद असद्भूत व्यवहार उपनय के एक विवक्षा से तीन भेद और दूसरी विवक्षा से नौ भेद, उपचरित असद्भूतव्यवहार उपनय के तीन भेदों के स्वरूप आदि का विश्लेषण दिगम्बरशास्त्र 'नयचक्र' और 'आलापपद्धति' के अनुसार उदाहरण के साथ किया गया है। 8. आठवीं ढाल -➖➖ Jain Education International 15 इस ढाल के प्रारम्भ में उपाध्याय यशोविजयजी ने देवसेन के नयचक्र के आधार पर निश्चयनय और व्यवहारनय को व्याख्यायित किया है। इस ढाल की आठवीं वीं गाथा से नौ नय, तीन उपनय, निश्चयनय और व्यवहारनय की समीचीन समीक्षा की है । यशोविजयजी ने अपनी सूक्ष्म तर्कशक्ति और तीक्ष्ण बुद्धि की शक्ति से अनेक युक्तियों और प्रयुक्तियों से देवसेनकृत नय वर्गीकरण के सत्यांश को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। जैसे यशोविजयजी ने प्रथम तर्क यह रखा है कि नैगम आदि 7 या 5 नयों के प्रत्येक के 100-100 भेद करने पर शास्त्रों में 700 या 500 नयों की बात ही कही गई है। यदि नौ नय होते तो 900 नयों की बात होती । द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनय को मिलाकर नय की संख्या नौ की गई है तो अर्पित और अर्पित को मिलाकर नयों की संख्या 11 क्यों नहीं की गई ? नैगम आदि सात नय, द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय इन मूल नय के ही उत्तरभेद होने से (2+7= 9) नौ नय करने में विभक्त का विभाजन नामक दोष लगता है । आगमशास्त्र में जीव के संसारी और मुक्त, ये दो भेद करने के पश्चात् पुनः जीव को मिलाकर संसारी, मुक्त और जीव ऐसे तीन भेदों का उल्लेख कहीं पर भी नहीं मिलता है । प्रदेशार्थिक नय और नैगमनय के शुद्ध आदि तीन भेदों का समावेश नहीं होने के कारण देवसेनकृत द्रव्यार्थिकनय के 10 भेद अपूर्ण और अधूरे हैं । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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