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7. श्रुत-अज्ञान - मिथ्यात्व से संयुक्त श्रुतज्ञान, श्रुत-अज्ञान है।
8. विभंगज्ञान - मिथ्यात्व से संयुक्त अवधिज्ञान, विभंगज्ञान है।
2. दर्शनगुण -
जिस शक्ति के कारण जीव को पदार्थ का सामान्य प्रतिभास होता है, वह दर्शनगुण है। जाति, क्रिया, गुण आदि विकल्पों से रहित वस्तु के सत्तामात्र का बोध दर्शन कहलाता है।1054 दर्शन चार प्रकार का होता है -चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन। 1. चक्षुदर्शन – चक्षु इन्द्रिय से होनेवाला निर्विकल्पकबोध चक्षुदर्शन है। 2. अचक्षुदर्शन – चक्षु इन्द्रिय के अतिरिक्त शेष इन्द्रियों से होने वाला निर्विकल्पक
बोध अचक्षुदर्शन है।1055 3. अवधिज्ञान के पूर्व होनेवाला दर्शन अर्थात् इन्द्रियों और मन की सहायता के बिना
सभी रूपी पदार्थों का सामान्यबोध अवधिदर्शन है।1056
4. केवलदर्शन - समस्त रूपी और अरूपी पदार्थों का निर्विकल्पक बोध केवलदर्शन
है। 1057
3. वीर्य -
जीव की शक्ति वीर्य कहलाती है। वीर्य दो प्रकार का होता है1058 1. क्षायिक वीर्य – जो शक्ति वीर्यान्तरायकर्म के क्षय से उत्पन्न होती है, वह क्षायिकवीर्य है। 2.
1054 गोम्मटसार जीवकाण्ड, 482 1055 गोम्मटसार जीवकाण्ड 484
1056 पंचसंग्रह, 1/140
1057 गोम्मटसार जीवकाण्ड, 486 1058 नयचक्र का विवेचन- पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृ.8
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