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जिसका निषेध करता है, वही उसके विपरीत का विधान भी करता है, वह पर्युदास नञ् है। जैसे यह अधर्मी है। यहाँ अधर्मी का अर्थ धर्म के विरूद्ध पाप का आचरण करने वाला पापी व्यक्ति है। इस प्रकार पर्युदास नञ् विपरीत का विधान करता है। अचेतनत्व और अमूर्तत्व शब्दों के प्रारम्भ में जो नञ् है वह पर्युदास नञ् होने से चेतनत्व और अमूर्तत्व का निषेध या अभाव न होकर चेतनत्व और मूर्तत्व के विपरीत गुणों अचेतनत्व और अमूर्तत्व का भाव है।1044 अतः इन कारणों से अचेतनत्व और अमूर्तत्वगुण अभावात्मक गुण न होकर दोनों स्वतंत्र सद्रूप गुण है।
यशोविजयजी के अनुसार विशेष गुण -
____ जो गुण छहों द्रव्यों में न होकर किसी प्रतिनियत द्रव्यमात्र में पाये जाते हैं, वे विशेषगुण कहलाते हैं। आलापपद्धति के अनुसार उपाध्याय यशोविजयजी ने भी इन सोलह विशेष गुणों को इस प्रकार गिनाया है - ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, गमनहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, अवगाहनहेतुत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व, चेतनत्व और अचेतनत्व । 1045 'आलापपद्धति' और 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में इन सोलह विशेष गुणों का अर्थ प्रसिद्ध होने से विशेष व्याख्या की नहीं की गई है। परन्तु माइल्लधवलकृत नयचक्र में ज्ञानादि विशेष गुणों के अवान्तर भेदों की चर्चा हुई है।
यथा
"अट्ठ चदु णाणदंसणभेया सत्तिसुहस्स इह दो दो । वण्ण रस पंच गंधा दो फासा अट्ठ णायव्वा।।"1046
ज्ञानगुण के आठ, दर्शनगुण के चार, वीर्य और सुख के दो, रूप और रस के पाँच, गन्ध के दो और स्पर्श के आठ भेद हैं। इनका सामान्य विवेचन इस प्रकार है:
1044 नञः पर्युदाससार्थकत्वात् नञ्पदवाच्यतायाश्चः ..... 1045 ज्ञानदृष्टि सुख वीर्य फरस रस 1046 नयचक्र, गा. 14 (माइल्ल धवलकृत)
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/2 टब्बा . द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/3
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