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________________ 366 कोई भी कार्य उत्पन्न होता है तो उसके पीछे कोई न कोई जनक कारण अवश्य रहता है। वह कारण किसी न किसी धर्म से युक्त होता है और भावात्मक होता है। क्योंकि अभाव से कार्योत्पत्ति संभव नहीं होती है। इसी प्रकार 'यह अचेतन है', 'यह अचेतन है', 'यह अमूर्त है', 'यह अमूर्त है', इस प्रकार का जो बोधात्मक कार्य है, उसका जनक कारण अचेतनत्व और अमूर्तत्व गुण वाले पदार्थ है। इन पदार्थों में ऐसा कोई धर्म विद्यमान है जिसके कारण 'यह अचेतन है', 'यह अमूर्त है' ऐसा बोध होता है। अचेतनत्व और अमूर्तत्व गुण ही वह धर्म है, जिसके कारण 'यह अचेतन है', 'यह अमूर्त है' ऐसा बोध होता है। अतः 'यह अचेतन है', 'यह अमूर्त है' ऐसे बोध रूप कार्य का जनक कारण अचेतन और अमूर्त पदार्थ के अवच्छेदक धर्म के रूप में अचेतनत्व और अमूर्तत्व गुण की सिद्धि होती है। दूसरी बात यह है कि व्यवहार विशेष के नियामक रूप से भी दोनों गुणों की सिद्धि होती है। जहाँ अभावात्मकता होती है, वहाँ यह अचेतन है, यह अमूर्त है, ऐसा व्यवहार नहीं होता है। जैसे जहाँ घट का या शशशृंग का अभाव होता है, वहाँ 'यह अघट है' यह अशशशृंग है ऐसा व्यवहार नहीं होता है, अपितु घटाभाव, शशशृंगाभाव ऐसे वाक्य प्रयोग ही होते हैं। इसी प्रकार यदि अचेतनत्व, और अमूर्तत्व गुण चेतनत्व और मूर्तत्व का अभाव स्वरूप ही होते तो 'यह अचेतन है', 'यह अमूर्त है ऐसा विधिमुख प्रयोग न होकर 'यह चेतन नहीं है' और 'यह मूर्त नहीं है' ऐसा निषेधमुख व्यवहार ही होता। परन्तु 'यह अचेतन है और 'यह अमूर्त है' ऐसा अन्वयाभिमुख रूप व्यवहारविशेष ही प्रसिद्ध है। यदि ऐसा व्यवहारविशेष होता है तो इस का नियामक कारण भी अवश्य होना चाहिए और वह नियामक कारण ही अचेतनत्व और अमूर्तत्वगुण है। तीसरी बात यह है कि जहाँ नञ् पद होता है, वहाँ केवल अभावात्मक अर्थ ही नहीं होता है। व्याकरण शास्त्र के अनुसार 'नञ' दो प्रकार का होता है - प्रसह्यनञ् और पर्युदास नञ् । जो नञ् केवल निषेध को ही सूचित करता है, वह प्रसह्य नञ् है, जैसे- अनर्थकं वचः। इस उदाहरण में अर्थ (प्रयोजन) का निषेध हुआ है। जो नञ् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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