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________________ 364 आदि जीवनधर्म होते हैं।1035 शरीर में चेतना नहीं रहने पर बढ़ना, जुड़ना, आहार आदि का पाचन, रूधिर का दौड़ना, नाड़ियों का चलना, घाव का सूखना आदि जैविक क्रियाएँ भी नहीं होती है। जब तक शरीर में चेतनत्वगुण रहता है तब तक ही प्राणी जीता है। अतः सुख-दुःख रूप संवेदन या अनुभूति ही चेतनत्व गुण है। केवल जीवद्रव्य में ही चैतन्यगुण होता है। धर्मास्तिकाय आदि शेष पांच द्रव्यों में चैतन्य नहीं होता है। 8. अचेतनत्व - अचेतन के भाव को अचेतनत्व कहा जाता है।1096 अचेतनत्व का अर्थ है अनुभूति का अभाव। चैतन्यगुण का विपरीत गुण अचैतन्यगुण है। 1037 जिस शक्ति के निमित्त से सुख-दुःख का संवेदन नहीं होता है, आनंद-प्रमोद, हर्ष-शोक, पीड़ा आदि का अनुभव नहीं होता है, वह अचेतनत्वगुण है। जड़पना अचेतनत्वगुण है। यह गुण जीवद्रव्य को छोड़कर शेष धर्मास्तिकाय आदि पाँचों द्रव्यों में पाया जाता है। 9. मूर्तत्व - मूर्तता का जो भाव है, वह मूर्तत्व है। रूप रसादि का सद्भाव मूर्तत्व गुण है। 1038 यशोविजयजी ने मूर्तता को परिभाषित करते हुए कहा है कि जो गुण रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के संनिवेश से अभिव्यक्त होता है तथा केवल पुद्गलास्तिकाय द्रव्य में ही रहता है, वह मूर्तता गुण है।1039 दूसरे शब्दों में एक प्रकार का रूप युक्त 1035 जेहथी जाति-वृद्धि-भग्नक्षत संरोहणादि जीवनधर्म होई छइ .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.11/2 का टब्बा 1036 अचेतनस्थ भावः अचेतनत्वं अचैतन्य अननुभवनं ................. आलापपद्धति, सूत्र 102 1037 एहथी विपरीत अचेतनत्व-अजीवमात्रनो गुण छइं ........... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.11/2 का टब्बा 1038 मूर्तस्यभावः मूर्तत्वं । रूपादिमत्वं ...... आलापपद्धति, सू. 103 1039 मूर्ततागुण- रूपादिसंनिवेशाभिव्यङग्य पुद्गलद्रव्यामात्रवृत्ति छई..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/2 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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