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________________ 363 जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कोई न कोई आकार अवश्य रहता है, वह प्रदेशत्व गुण है।030 प्रदेशत्वगुण के कारण प्रत्येक द्रव्य अपने प्रदेशरूप आकार में अर्थात् स्वक्षेत्र में स्थित रहता है। धर्म, अधर्म और जीवद्रव्य का आकार असंख्यातप्रदेशी है। अलोकाकाशद्रव्य का आकार अनंतप्रदेशी है। लोकाकाश का आकार असंख्यातप्रदेशी है। पुद्गल परमाणु का आकार एकप्रदेशी है, परन्तु स्कन्ध का आकार संख्यात असंख्यात् यावत् अनंतप्रदेशी है। कालाणु का आकार एकप्रदेशी है।1031 उपाध्याय यशोविजयजी ने भी एक पुद्गल परमाणु जितने आकाशक्षेत्र में व्याप्त रहता उतने क्षेत्र में व्याप्तपने को प्रदेशत्वगुण कहा है। परमाणु एक आकाश प्रदेश में व्याप्त रहता है। अतः उस पुद्गल परमाणु का एक आकाशप्रदेश में स्थित रहना प्रदेशत्वगुण है।1032 7. चेतनत्व - ___चेतना के भाव को चैतन्य कहा जाता है। चैतन्य का अर्थ है अनुभवन, चैतन्य अनुभूतिरूप है, अनुभूति क्रियारूप है और क्रिया मन, वचन और काय में अन्वित है।1093 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में भी आत्मा के अनुभवात्मक गुण को चैतन्यगुण कहा है। इस गुण के कारण ही 'मैं सुख-दुःखादि का अनुभव करता हूँ, ऐसा व्यवहार होता है। 034 आत्मा को सुख-दुःख, आनंद-प्रमोद, हर्ष-शोक की अनुभूति होती है। वह सुख-दुःखादि को उस-उस रूप में जानती और मानती है। यही आत्मा का चैतन्यगुण है। इस चैतन्यगुण से ही जन्म होना, बढ़ना, भग्न अस्थियों का जुड़ना 1030 नयचक्र-विवेचन, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृ.7 1031 नियमसार, गा. 35, 36 1032 अविभागी पुद्गल यावत् क्षेत्रइं रहइं, तावत् क्षेत्रव्यापीपणुं, ते प्रदेशत्वगुण, ....द्रव्यगुणपर्यायनोरास गा.11/2 का टब्बा 1033 चेतनस्य भावः चेतनत्वं। चैतन्यं अनुभवनं आलापपद्धति, सूत्र 101 1034 चेतनत्व, ते आत्मानो अनुभवरूप गुण कहिइं जेहथी ............ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/2 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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