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लिए स्थूल स्कन्ध और सूक्ष्म परमाणु-द्वयणुक आदि पुद्गल द्रव्य प्रत्यक्ष प्रमाण से ही ग्राह्य है। शरीरधारी जीव को छद्मस्थ प्राणी प्रत्यक्ष प्रमाण से जानता है तो शरीररहित जीव को अनुमान और आगमप्रमाण से जानता है। सर्वज्ञ को दोनों प्रत्यक्षप्रमाण से ग्राह्य है। इस प्रकार किसी-किसी जीव की अपेक्षा से अलग-अलग द्रव्य अलग-अलग प्रमाण के विषय बनते हैं। इसलिए प्रमेयत्वगुण सभी द्रव्यों में सर्वसाधारण रूप से पाये जाने पर भी कथंचित् रूप से ही अनुगत है। छहों द्रव्यों में प्रमेयशक्ति होने से ही ज्ञान छहों द्रव्यों के स्वरूप का निर्णय कर सकता है। प्रमेयत्वगुण को नहीं मानने पर सभी द्रव्य अज्ञात ही रहेंगे। वे किसी भी प्रमाण का विषय नहीं बन सकेगें।
5. अगुरूलघुत्व -
पांचवाँ सामान्यगुण अगुरूलघुत्व है। आलापपद्धति के अनुसार अगुरूलघुत्व का जो भाव है, वही अगुरूलघुत्व गुण है। यह गुण सूक्ष्म और वचन से अगोचर है। यह प्रतिसमय प्रत्येक द्रव्य में विद्यमान रहता है और आगमप्रमाण से ही ज्ञात होता है। 1022 जिनोपदिष्ट सूक्ष्म तत्त्व जो युक्तियों से सिद्ध नहीं होते हैं, उन्हें आगमसिद्ध मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि केवली भगवान् अन्यथावादी नहीं होते हैं।1023 यशोविजयजी ने भी अगुरूलघुगुण के विषय में अधिक कुछ स्पष्टीकरण नहीं करके संक्षेप में इतना ही कहा है कि अगुरूलघुत्वगुण सूक्ष्म है अर्थात् समझने के लिए दुर्बोध है। शब्दों के माध्यम से इस गुण की व्याख्या करना संभव नहीं होने के कारण यह आगमग्राह्य है। 1024
1022 अगुरूलघोः भावः अगुरूलघुत्वं । सूक्ष्माः अवाग्गोचरा : ... ......... आलापपद्धति, सू. 99 1023 सूक्ष्म जिनोदितं तत्त्वं हेतुभिनैव हन्यते
आलापपद्धति, श्लो. 4 1024 अगुरूलघुत्वगुण सूक्ष्म, आज्ञाग्राह्य छइं .................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/1 का
टब्बा
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